Monday, June 15, 2015

पूजा में कुमकुम का तिलक क्यों लगाया जाता है ??

मान्यताओं के अनुसार, सूने मस्तक को शुभ नहीं माना
जाता। पूजन के समय माथे पर अधिकतर कुमकुम का तिलक
लगाया जाता है। सुहागन स्त्री कुमकुम सिंगार के
बिना अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि देवी
को कुमकुम चढ़ाने से उनका विशेष आशीर्वाद मिलता है।
कुमकुम का देवी पूजा में महत्व
यदि अविवाहित कन्याएं कुमकुम से देवी की पूजा करती
हैं तो उन्हें अच्छा पति मिलता है। विवाहित स्त्रियां
तीज, त्यौहार या व्रत में कुमकुम से पूजा करती हैं तो उनके
पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए
कुमकुम का उपयोग देवी पूजा में किया जाता है, जबकि
देवताओं के तिलक व पूजन के लिए चंदन का उपयोग किया
जाता है।
धार्मिक कारण
शास्त्रों में बताया गया है कि पुरुष देवताओं की पूजा में
कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है, जबकि देवियों की पूजा
कुमकुम के बिना अधूरी मानी जाती है। ऐसा विधान
सिर्फ इसलिए नहीं बनाया गया है, क्योंकि पुरुष
देवताओं को अप्रिय माना जाता है, बल्कि इसका
कारण कुमकुम का एक तरह की सौभाग्य सामग्री होना
है। जिस तरह महिलाओं के सौन्दर्य प्रसाधन केवल
महिलाओं के ही उपयोग के लिए होते हैं। ठीक उसी तरह
कुमकुम भी एक तरह का सिंंगार होने के कारण केवल
देवियों को प्रिय है।
वैज्ञानिक कारण
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि कुमकुम हल्दी का
चूर्ण होता है। जिसमें नींबू का रस मिलाने से लाल रंग
का हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कुमकुम त्वचा के
शोधन के लिए सबसे बढ़़िया औषधी है। इसका तिलक
लगाने से मस्तिष्क तंतुओं में क्षीणता नहीं आती है।
इसलिए पूजा में कुमकुम का तिलक लगाया जाता है।

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