Tuesday, June 16, 2015

वेद ही ईश्वरीय ज्ञान क्यूँ हैं?

सर्वप्रथम तो किसी भी मत की धर्म पुस्तक को उसके अनुनायियों के दावे मात्र से ईश्वरीय ज्ञाननहीं माना जा सकता। हमे उसके दावेकी परीक्षा करनी होगी.

1. ईश्वरीय ज्ञान सृष्टी के आरंभ में आना चाहिये न की मानव की उत्पत्ति के लाखो वर्षों के बाद?>>>>>>> केवल एक वेद ही हैं जो सृष्टी के आरंभ में ईश्वर द्वारा मानव जाति को प्रदान किया गया था। बाइबल 2000 वर्ष के करीब पुराना हैं, कुरान 1400 वर्ष के करीब पुराना हैं, जेंद अवस्ता 4000 वर्ष के करीब पुराना है। इसी प्रकार अन्य धर्म ग्रन्थ हैं।
मानव सृष्टी की रचना कई करोड़ वर्ष पुरानी हैं जबकि आधुनिक विज्ञान के अनुसार केवल कुछ हज़ार वर्ष पहले मानव की विकासवाद द्वारा उत्पत्ति हुई हैं।
जब पहले पहल सृष्टी हुई तो मनुष्य बिनाकुछ सिखाये कुछ भी सीख नहीं सकता था। इसलिए मनुष्य की उत्पत्ति के तुरंत बाद उसेईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता थी।

2. ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक में किसी देश का भूगोल और इतिहास नहीं होना चाहिए।
ईश्वरीय ज्ञान की धर्म पुस्तक संपूर्ण मानव जाति के लिए होनी चाहिए नाकि किसी एक विशेष देश के भूगोल या इतिहास से सम्बंधित होनी चाहिए।
>>>>> जबकि अगर हम बाइबल का अवलोकन करे तो विशेष रूप से फिलिस्तीन (Palestine)देश के भूगोल और यहुदिओं (Jews) के जीवन पर केन्द्रित हैं,
जिससे यह निष्कर्ष निकलता हैंकी ईश्वर ने कुरान की रचना अरब देश के लिए और बाइबल की रचना फिलिस्तीन देश के लिए की हैं।
वेद में किसी भी देश विशेष या जाति विशेष के अथवा व्यक्ति विशेष के लाभ के लिए नहीं लिखा गया हैं अपितु उनका प्रकाश तो सकल मानव जाति के लिए हुआ हैं।

3. ईश्वरीय ज्ञान किसी देश विशेष की भाषा में नहीं आना चाहिए।
ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए दिया गया हैं, अत: उसका प्रकाश किसी देश विशेष की भाषा में नहीं होना चाहिए।
किसी देश विशेष की भाषा में होने से केवल वे ही देश उसका लाभ उठा सकेगे, अन्य को उसका लाभ नहीं मिलेगा।
कुरान अरबी में हैं और बाइबल इब्रानी (Hebrew) में हैं जबकि वेदों की भाषा वैदिक संस्कृत हैं जो की सृष्टी की प्रथम भाषा हैं और सृष्टी की उत्पत्ति के समय किसी भी भाषा का अस्तित्व नहीं था तब वेदों का उद्भव वैदिक भाषा में हुआ जो की पृथ्वी पर रहने वाले सभीप्राणियों की सांझी भाषा थी।कालांतर में संसारकी सभी भाषाएँ संस्कृत भाषा से ही अपभ्रंश होकर निकली हैं.

4. ईश्वरीय ज्ञान को बार बार बदलने की आवश्यकता या परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
ईश्वर पूर्ण और सर्वज्ञ हैं। उनके किसी भी काम में त्रुटी अथवा कमी नहीं हो सकती। वे अपनी सृष्टी में जो भी रचना करते हैं उसे भली भांति विचार कर करते हैं और फिर उसमें परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
जिस प्रकार ईश्वर नें सृष्टी के आरंभ मेंप्राणीमात्र के कल्याण के लिए सूर्य और चंद्रमा आदि की रचना करी जिनमें किसी भी प्रकार केपरिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं हैं
>>>>>>>>>उसी प्रकार परमात्मा का ज्ञान भी पूर्ण हैं उसमे भी किसी भी प्रकार के परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं हैं।
बाइबल के विषय में यह भी आता हैं की बाइबल के भिन्न भिन्न भाग भिन्न भिन्न समयों पर आसमान से उतरे। ???>>>>> इसी प्रकार मुस्लमान अभी तक ये मानते हैं की ईश्वर ने पहले जबूर, तौरेत, इंजील के ज्ञान प्रकाशित करे फिर इनको निरस्त कर दिया और अंत में ईश्वर का सच्चा और अंतिम पैगाम कुरान का प्रकाश हुआ। ???
बाइबल 2000 वर्ष पहले और कुरान 1400 वर्ष पहले प्रकाश में आया इसका मतलब जो मनुष्य 2000 वर्ष पहले जन्म ले चुके थे वे तो ईश्वर के ज्ञान से अनभिज्ञ ही रह गए >>>>>और इस अनभिज्ञता के कारण अगर उन्होंने कोई पाप कर्म कर भी दिया तो उसका दंड किसे मिलना चाहिए।
ईश्वर का केवल एक ही ज्ञान हैं वेद जोकि सृष्टी की आदि में दिया गया था और जिसमे परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं हैं क्यूंकि वेद पूर्ण हैं और सृष्टी के आदि से अंत तक मानव जाति का मार्गदर्शन करते रहेगे।
जैसे ईश्वर अनादी हैं उसी प्रकार ईश्वरका ज्ञान वेद भी अनादी हैं। वेद के किसी भी सिद्धांत को बदलने की आवश्यकता ईश्वर कोनहीं हुई इसलिए केवल वेद ही ईश्वरीय ज्ञान हैं।

5. ईश्वरीय ज्ञान विज्ञान विरुद्ध नहीं होना चाहिए और उसमे विभिन्न विद्या का वर्णन होना चाहिए।
आज विज्ञान का युग हैं। समस्त मानव जाति विज्ञान के अविष्कार के प्रयोगों से लाभान्वित हो रही हैं। ऐसे में ईश्वरीय ज्ञान भी वही कहलाना चाहिए जो ग्रन्थ विज्ञान के अनुरूप हो।
उसमे विद्या का भंडार होना चाहिए। उसमेसभी विद्या का मौलिक सिद्धांत वर्णित हो जिससे मानव जाति का कल्याण होनाचाहिए।
जिस प्रकार सूर्य सब प्रकार के भौतिकप्रकाश का मूल हैं उसी प्रकार ईश्वर का ज्ञान भी विद्यारूपी प्रकाश का मूल होना चाहिए।जो भीधर्म ग्रन्थ विज्ञान विरुद्ध बाते करते हैं वेईश्वरीय ज्ञान कहलाने के लायक नहीं हैं।

 Note:- बाइबल को धर्म ग्रन्थ माननेवाले पादरियों ने इसलिए गलिलियो (Galilio) को जेल में डाल दिया था क्यूंकि बाइबल के अनुसार सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता हैं ऐसामानती हैं जबकि गगिलियो का कथनसही था की पृथ्वी सूर्य के चारों ओरघुमती हैं।

 Note:-उसी प्रकार बाइबल में रेखा गणित (Algebra) का वर्णन नहीं हैं इसलिए देवी हिओफिया को पादरी सिरिल की आज्ञासे बेईज्ज़त किया गया था क्यूंकि वह रेखा गणित पढाया करती थी।
कुरान में इसी प्रकार से अनेक विज्ञान विरुद्ध बाते हैं जैसे धरती चपटी हैं और स्थिर हैं जबकि सत्य ये हैं की धरती गोल हैं और हमेशाअपनी कक्षा में घुमती रहती हैं
  प्रत्युत वेदों में औषधि ज्ञान  
(auyrveda), शरीर विज्ञान (anatomy),राजनिति विज्ञान (political science), समाज विज्ञान (social science) , अध्यातम विज्ञान (spritual science), सृष्टी विज्ञान (origin of life) आदि का प्रतिपादन किया गया हैं।   
 आर्यों के सभी दर्शन शास्त्र और आयुर्वेद आदि सभी वैज्ञानिक शास्त्र वेदों को ही अपना आधार मानते हैं। अत: केवल वेद ही ईश्वरीय ज्ञान हैं, अन्य ग्रन्थ नहीं।

♪वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने की वेद स्वयं ही अंत साक्षी देते हैं। अनेक मन्त्रों से हम इस बातको सिद्ध करते हैं जैसे

1. सबके पूज्य,सृष्टीकाल में सब कुछ देने वाले और प्रलयकाल में सब कुछ नष्ट कर देने वाले उस परमात्मा से ऋग्वेद उत्पन्न हुआ, सामवेद उत्पन्न हुआ, उसी से अथर्ववेद उत्पन्न हुआ और उसी से यजुर्वेद उत्पन्न हुआ हैं- {ऋग्वेद 10/90/9, यजुर्वेद 31/7, अथर्ववेद 19/6/13}

 2. सृष्टी के आरंभ में वेदवाणी के पति परमात्मा ने पवित्र ऋषियों की आत्मा में अपनी प्रेरणा से विभिन्न पदार्थों का नाम बताने वालीवेदवाणी को प्रकाशित किया- {ऋग्वेद 10/71/1}

 3. वेदवाणी का पद और अर्थ के सम्बन्ध सेप्राप्त होने वाला ज्ञान यज्ञ अर्थात सबकेपूजनीय परमात्मा द्वारा प्राप्त होता हैं- {ऋग्वेद 10/71/3}

 4. मैंने (ईश्वर) ने इस कल्याणकारीवेदवाणी को सब लोगों के कल्याण केलिए दिया हैं- {यजुर्वेद 26/2}

 5. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद स्कंभ अर्थात सर्वाधार परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं- {अथर्ववेद 10/7/20}

 6. यथार्थ ज्ञान बताने वालीवेदवाणियों को अपूर्व गुणों वाले स्कंभ नामकपरमात्मा ने ही अपनीप्रेरणा से दिया हैं- {अथर्ववेद 10/8/33}

 7. हे मनुष्यों! तुम्हे सब प्रकार के वर देनेवाली यह वेदरूपी माता मैंनेप्रस्तुत कर दी हैं- {अथर्ववेद 19/71/2}

 8. परमात्मा का नाम ही जातवेदा इसलिए हैं की उससे उसका वेदरूपी काव्य उत्पन्न हुआ हैं- {अथर्ववेद-5/11/2}

आइये ईश्वरीय के सत्य सन्देश वेद को जानेवेद के पवित्र संदेशों को अपने जीवन मेंग्रहण कर अपने जीवन का उद्धार करें

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