Tuesday, June 16, 2015

रासलीला

श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी का उतना ही महत्व है जितना हमारे शरीर में आत्मा का। श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी दसवें स्कंध में 29 से 33 अध्याय में है। एक गोपी जो भगवान कृष्ण के प्रति कोई इच्छा नहीं रखती, वह सिर्फ कृष्ण को ही चाहती है। उनके साथ रास खेलना चाहती है। उसकी खुशी सिर्फ भगवान कृष्ण को खुश देखने में है। भागवत में श्री शुकदेव जी कहते हैं कि श्री कृष्ण वृंदावन के जंगलों में रासलीला करना चाहते थे। वास्तव में भगवान कुछ नहीं चाहता, वह तो स्वयं ही साध्य भी है, साधन भी।

वास्तव में रास क्या है? रास भगवान कृष्ण और कामदेव के बीच का एक युद्ध है।

बांसुरी की सुरीली तान सुनकर गोपियां अपनी सुध खो बैठीं। कृष्ण ने उनके मन मोह लिए। उनके मन में काम का भाव जागा लेकिन यह काम कोई वासना नहीं थी। यह तो गोपियों के मन में भगवान को पाने की इच्छा थी। आमतौर पर काम, क्रोध, मद, मोह और भय अच्छे भाव नहीं माने जाते हैं लेकिन जिसका मन भगवान ने चुरा लिया हो तो ये भाव उसके लिए कल्याणकारी हो जाते हैं।


रासलीला कामलीला नहीं, कामविजय लीला है

रास-कार्तिक मास की पूर्णिमा की रात्रि में रासलीला के कार्यक्रम निश्चय अनुसार श्रीकृष्ण निर्धारित स्थान और समय पर वहां पहुंच कर बांसुरी बजाने लगे।

रासलीला को समझ लीजिए। रासलीला के तीन सिद्धान्त हैं। इसमें गोपी के शरीर के साथ कुछ लेना-देना नहीं है

इसमें लौकिक काम भी नहीं है और तीसरी बात यह साधारण स्त्री पुरूष का नहीं, जीव और ईश्वर का मिलन है। शुद्ध जीव का ब्रह्म के साथ विलास ही रास है। शुद्ध जीव का अर्थ है माया के आवरण से रहित जीव। ऐसे जीव का ब्रम्ह से मिलन होता है। शुकदेवजी कहते हैं कि इस लीला का चिन्तन करना है अनुकरण नहीं।
शरद पूर्णिमा की रात्रि आई। रासलीला कामलीला नहीं है यह तो काम विजय लीला है।

ब्रह्मादि देवों की पराजय हुई तो कन्दर्प कामदेव का अभिमान जाग उठा कि अब तो मैं ही सबसे बड़ा देव हूं। उसने कृष्ण के पास आकर मल्लयुद्ध का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण-काम-ऐसी कथा आती है कि काम का एक नाम मार भी है। उसे सभी मारते हैं कृष्ण ने कामदेव से पूछा कि शिवजी ने तुझे भस्मीभूत कर दिया था, वह क्या भूल गया तू ?
कामदेव बोला हां वह तो ठीक है मुझसे जरा गड़बड़ हो गई थी।
कृष्ण ने कहा कि रामावतार में भी तू हार गया। काम ने कहा आपने उस अवतार में मर्यादा का अतिशय पालन करके मुझे हराया। उस अवतार में आप एक पत्नी व्रत का पालन करते थे, तो मैं हार गया।अब तेरी क्या इच्छा है? कृष्ण ने पूछा।
कामदेव बोला-अब आप इस कृष्णावतार में तो किसी मर्यादा का पालन करते नहीं और वृन्दावन की युवतियों के साथ विहार किया करते हैं। मैं चाहता हूं कि आप पर तीर चलाऊं, यदि आप निर्विकारी रहेंगे तो विजय आपकी होगी और आप कामाधीन होंगे तो विजय मेरी होगी।
आप निर्विकारी रहेंगे तो आपको ईश्वर मानुंगा और कामधीन हो गए तो मैं ईश्वर बन जाऊंगा। श्रीकृष्ण ने अनगिनत सुंदरियों के साथ रहकर काम का पराभव किया।
काम ने धनुष-बाण फेंक दिए और श्रीकृष्ण की शरण ले ली।
श्रीकृष्ण का नाम मदनमोहन हैं। श्रीकृष्ण तो योग योगेश्वर हैं। काम ने प्राय: सभी को हरा दिया था। सो उसका गर्विष्ठ होना सहज था। रासलीला से भगवान् ने उसके गर्व का नाश कर दिया। काम विशेषत: रात्रि के दूसरे पहर में अधिक आता है। सो उस समय स्नान आदि करके पवित्र होकर रासलीला का चिन्तन करोगे तो काम नहीं सताएगा। पुन: स्मरण कर लें कि रासलीला अनुकरणीय नहीं, चिन्तनीय है। उसका चिन्तन कामनाशी है।
प्रभु ने सोचा कि इन गोपियों का प्रेम सच्चा है। यदि मैं आज इन्हें दूर हटाऊंगा तो ये प्राण त्याग कर देंगी। प्रभु को विश्वास हो गया कि जीव शुद्ध भाव से मुझे मिलने आया है तो उन्होंने अपना लिया। प्रभु ने साथ ही अनेक स्वरूप भी धारण किए। जितनी गोपियां थीं उतने स्वरूप बना लिए और प्रत्येक गोपी के साथ एक-एक स्वरूप रखकर रास आरम्भ किया।

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