एक होना – ना केवल सामाजिक स्तर पर बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी
महत्वपूर्ण समझा जाता है। प्रेमी – युगल अकसर तन, मन और भावना से एक होने
की बात भी करते हैं।
लेकिन क्या यह संभव है?
इस सृष्टि में तन, मन या भावना के धरातल पर कोई भी दो प्राणी क्या एक हो सकते हैं?
नहीं। अगर एक हो सकते हैं तो सिर्फ ऊर्जा के स्तर पर।
ऊर्जा के कई स्तर होते हैं। इसके एक स्तर को तो आप जानते ही हैं – वह भोजन जो आप खाते हैं, वह पानी जो आप पीते हैं,
वह हवा जिसमें आप सांस लेते हैं और वह धूप जिसका आप उपयोग करते हैं, ये सभी चीजें आपके शरीर के भीतर जाकर ऊर्जा बन रही हैं।
रोजमर्रा के जीवन में आप जिस ऊर्जा का अनुभव करते हैं, वह अलग-अलग लोगों में अलग-अलग सीमा तक होती है। इसे देखने का दूसरा तरीका भी है।
जिसे आप जीवन कहते हैं या जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह भी अपने आप में एक ऊर्जा है। आप कितने जीवंत हैं, आप कितने सजग हैं, उसी से यह तय होता है कि आप कितने ऊर्जावान हैं।
मान लीजिए कोई आपके पास आता है और आपको ‘बेवकूफ’ कह देता है, आप फट पड़ते हैं।
अब आपको लगता है कि आप क्रोधित हैं, लेकिन यह भाव पहले से पनप रहा था।लेकिन अपने ऊर्जा स्तर की वजह से आप इसके प्रति जागरूक नहीं हैं।
आप जो भोजन करते हैं, जो पानी पीते हैं, जो सांस लेते हैं या जो कुछ भी भीतर लेते हैं, उसे सक्रिय और लाभकारी ऊर्जा में बदलने के लिए एक खास क्षमता की जरूरत होती है।
यह क्षमता अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होती है। इस क्षमता से हमारा मतलब अपने भीतर लिए गए पदार्थ को बस पचा लेने या उसे अपने शरीर का एक हिस्सा बना लेने से नहीं है।
आप जो भी चीज अपने भीतर लेते हैं, उसका ऊर्जा में रूपांतरित होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कितने जीवंत हैं या आपके भीतर पहले से मौजूद ऊर्जा कितनी सजग है।
आपने अपने आसपास ऐसे कई लोगों को देखा होगा या खुद भी कभी ऐसा महसूस किया होगा कि जब आप किसी आध्यात्मिक क्रिया का अभ्यास करना शुरू करते हैं तो आपकी ऊर्जा का स्तर बिल्कुल अलग होता है।
एक बार जब आप ऐसे अभ्यास करने लगते हैं फिर आपके सजग रहने की क्षमता में पहले से बढ़ोत्तरी हो जाती है, आप पहले जितनी जल्दी थकते नहीं हैं और आप बड़े ही सहज तरीके से जीवन के साथ आगे बढ़ते रहते हैं।
अगर आप किसी ऐसी क्रिया का रोज अभ्यास करते हैं तो आप देखेंगे कि अगर किसी दिन आप क्रिया न करें तो एक अलग तरह का फर्क आपको महसूस होगा।
देखा जाए तो क्रिया, प्राणायाम या ध्यान जैसे अभ्यासों का असली मकसद आपके ऊर्जा स्तर को ज्यादा सजग बनाना ही है।
अगर आप जीवन के और ऊंचे स्तर पर जाकर काम करना चाहते हैं, तो आपको उच्च स्तर और उच्च गुणवत्ता वाली ऊर्जा की जरूरत होगी।
इसलिए सारी आध्यात्मिक प्रक्रियाएं ऊर्जा के इस स्तर को उठाने की है। इसे करने के कई तरीके हैं।
आप में से कइयों ने कुछ आसान से तरीकों से इसकी शुरुआत भी कर दी होगी। किसी इंसान के भीतर ऊर्जा का संचार करने के कई और तरीके भी हैं, जो थोड़े नाटकीय हो सकते हैं।
ऐसे तरीकों के लिए खास तैयारी की जरूरत होती है। इसके लिए जीवन पर नियंत्रण और संतुलन चाहिए।
लेकिन क्या यह संभव है?
इस सृष्टि में तन, मन या भावना के धरातल पर कोई भी दो प्राणी क्या एक हो सकते हैं?
नहीं। अगर एक हो सकते हैं तो सिर्फ ऊर्जा के स्तर पर।
ऊर्जा के कई स्तर होते हैं। इसके एक स्तर को तो आप जानते ही हैं – वह भोजन जो आप खाते हैं, वह पानी जो आप पीते हैं,
वह हवा जिसमें आप सांस लेते हैं और वह धूप जिसका आप उपयोग करते हैं, ये सभी चीजें आपके शरीर के भीतर जाकर ऊर्जा बन रही हैं।
रोजमर्रा के जीवन में आप जिस ऊर्जा का अनुभव करते हैं, वह अलग-अलग लोगों में अलग-अलग सीमा तक होती है। इसे देखने का दूसरा तरीका भी है।
जिसे आप जीवन कहते हैं या जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह भी अपने आप में एक ऊर्जा है। आप कितने जीवंत हैं, आप कितने सजग हैं, उसी से यह तय होता है कि आप कितने ऊर्जावान हैं।
मान लीजिए कोई आपके पास आता है और आपको ‘बेवकूफ’ कह देता है, आप फट पड़ते हैं।
अब आपको लगता है कि आप क्रोधित हैं, लेकिन यह भाव पहले से पनप रहा था।लेकिन अपने ऊर्जा स्तर की वजह से आप इसके प्रति जागरूक नहीं हैं।
आप जो भोजन करते हैं, जो पानी पीते हैं, जो सांस लेते हैं या जो कुछ भी भीतर लेते हैं, उसे सक्रिय और लाभकारी ऊर्जा में बदलने के लिए एक खास क्षमता की जरूरत होती है।
यह क्षमता अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होती है। इस क्षमता से हमारा मतलब अपने भीतर लिए गए पदार्थ को बस पचा लेने या उसे अपने शरीर का एक हिस्सा बना लेने से नहीं है।
आप जो भी चीज अपने भीतर लेते हैं, उसका ऊर्जा में रूपांतरित होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कितने जीवंत हैं या आपके भीतर पहले से मौजूद ऊर्जा कितनी सजग है।
आपने अपने आसपास ऐसे कई लोगों को देखा होगा या खुद भी कभी ऐसा महसूस किया होगा कि जब आप किसी आध्यात्मिक क्रिया का अभ्यास करना शुरू करते हैं तो आपकी ऊर्जा का स्तर बिल्कुल अलग होता है।
एक बार जब आप ऐसे अभ्यास करने लगते हैं फिर आपके सजग रहने की क्षमता में पहले से बढ़ोत्तरी हो जाती है, आप पहले जितनी जल्दी थकते नहीं हैं और आप बड़े ही सहज तरीके से जीवन के साथ आगे बढ़ते रहते हैं।
अगर आप किसी ऐसी क्रिया का रोज अभ्यास करते हैं तो आप देखेंगे कि अगर किसी दिन आप क्रिया न करें तो एक अलग तरह का फर्क आपको महसूस होगा।
देखा जाए तो क्रिया, प्राणायाम या ध्यान जैसे अभ्यासों का असली मकसद आपके ऊर्जा स्तर को ज्यादा सजग बनाना ही है।
अगर आप जीवन के और ऊंचे स्तर पर जाकर काम करना चाहते हैं, तो आपको उच्च स्तर और उच्च गुणवत्ता वाली ऊर्जा की जरूरत होगी।
इसलिए सारी आध्यात्मिक प्रक्रियाएं ऊर्जा के इस स्तर को उठाने की है। इसे करने के कई तरीके हैं।
आप में से कइयों ने कुछ आसान से तरीकों से इसकी शुरुआत भी कर दी होगी। किसी इंसान के भीतर ऊर्जा का संचार करने के कई और तरीके भी हैं, जो थोड़े नाटकीय हो सकते हैं।
ऐसे तरीकों के लिए खास तैयारी की जरूरत होती है। इसके लिए जीवन पर नियंत्रण और संतुलन चाहिए।
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