श्रावण की सुहानी फुहारों के बीच मन धर्म के प्रति सहज ही आकर्षित होने लगता है। इस मौसम में शिव नगरी उज्जयिनी का सौन्दर्य, धर्म से जुड़ कर पवित्र हो जाता है। विश्व भर में भगवान महाकालेश्वर कीश्रावण मास की सवारी प्रसिद्ध है। श्रावण के प्रति सोमवार को निकलने वाली इस विशेष सवारी को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।
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राजा निकलते हैं प्रजा के हालचाल जानने
शाम चार बजे सवारी के लिए राजाधिराज भूतभावन भगवान महाकालेश्वर तैयार होते हैं। कहा जाता है किउज्जैन में भगवान शिव राजाधिराज के रूप में विराजमान है। श्रावण मास में वे अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
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प्रजा अपने राजा से मिलने के लिए इस तरह व्याकुल होती है कि शहर के चौराहे-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चांदी की पालकी में सवार होते हैं। जैसे ही राजा महाकाल पालकी में विराजमान होते हैं। ठंडी हवा के एक शीतल झोंके से या हल्की फुहारों से प्रकृति भी उनका भीना स्वागत करती है।
कितनी भव्य होती है सवारी
राजा महाकाल सबसे मिलते हैं,सबको दर्शन देते हैं। एक तरफ सुरक्षा का दायरा और दूसरी तरफ भक्ति का चरम उत्कर्ष, जिसने यह नजारा पहली बार देखा उसकी तो भावावेश में आंखें ही छलछला जाती है।
खूबसूरत दृश्य क्षिप्रा नदी पर...
नगर के कुछ खास हिस्सों से गुजरती सवारी का सबसे खूबसूरत दृश्य क्षिप्रा नदी के किनारे देखने को मिलता है, जब नदी के दूसरे छोर से संत-महात्मा भव्य आरती करते हैं और विशेष तोप की सलामी के बीच राजा महाकाल क्षिप्रा का आचमन करते हैं।
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सवारी के साथ पधारे गजराज अपनी सूंड को ऊंची कर राजा के सम्मान में हर्ष व्यक्त करते हैं। पवित्र मंत्रोच्चार के साथ सवारी वापस मंदिर पहुंचती है। नगरवासी दिन भर अपने राजा के सम्मान में किया व्रत सवारी के दर्शन के बाद ही खोलते हैं।
राजा महाकाल देते हैं सबको आशीर्वाद
राजा महाकाल इस तरह श्रावण के प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं और कहते हैं कि इस दौरान वे इतनी राजसी मुद्रा में होते हैं कि हर अभिलाषा को पूरी करने का आशीर्वाद देते चलते हैं।
देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग सोमवार की इस दिव्य सवारी के दर्शन करने आते हैं, और मनचाहा वरदान लेकर जाते हैं। इस भव्य सवारी को देखने के बाद ही राजा महाकालेश्वर की दिव्यता को अनुभूत किया जा सकता है। |
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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