Sunday, August 2, 2015

गुरु ग्रह वैज्ञानिक दृष्टिकोण



  1. सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों में बृहस्पति का पांचवां स्थान है और यह सौरमंडल (Solar System) का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति इतना बड़ा ग्रह हैं की यदि शेष सभी ग्रह को आपस में जोड़ दिया जाये तो वह संयुक्त ग्रह भी  बृहस्पति से छोटा ही रहेगा।
  2. यह एक गैस दानव (Gas Giant) है। गैस दानव उन ग्रहों को कहा जाता है जिनमें मिटटी-पत्थर की बजाय ज़्यादातर गैस ही गैस होती है और जिनका आकार बहुत ही विशाल होता है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रह इस श्रेणी में आते हैं - बृहस्पति, शनि, अरुण (युरेनस)) और वरुण (नॅप्टयून)। इनमें पायी जाने वाली गैस ज़्यादातर हाइड्रोजन (H2) और हिलियम (He) होती है, हालांकि इनमें अक्सर और गैसें भी मिलती हैं, जैसे की अमोनिया। इसमें सर्वाधिक हाइड्रोजन पाया जाता है। गैसीय संरचना होने के कारण बृहस्पति की कोई ठोस सतह नहीं है। यहाँ हवाओं की गति 400 मील प्रति घंटा से अधिक होती है। 
  3. बृहस्पति ग्रह की सबसे उत्कृष्ट और विस्मयकारी विशेषता को 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot) कहा जाता है। यह बृहस्पति पर मौजूद 25,000 किमी लंबा और 12,000 किमी चौड़ा अंडाकार लाल धब्बा है जो इतना विशाल है कि इसमें दो पृथ्वी समा सकती हैं। बृहस्पति पर इस तरह के अन्य कई छोटे धब्बे मौजूद हैं। वास्तव में महान लाल धब्बा उच्च-दाब वाला क्षेत्र है जिसके बादल का सबसे उपरी भाग अपने आसपास के क्षेत्रों की तुलना में अधिक उंचा और ठंडा है।
  4. खगोलशास्त्रियों का मानना है कि बृहस्पति के केन्द्रीय भाग में हाइड्रोजन भयंकर दबाव से कुचलकर धातु हाइड्रोजन (Metallic Hydrogen) के रूप में मौजूद है। बृहस्पति का चुम्बकीय क्षेत्र हमारे सौर मंडल के किसी भी अन्य ग्रह से अधिक शक्तिशाली है और वैज्ञानिक कहते हैं कि इसकी वजह बृहस्पति के अन्दर की धातु हाइड्रोजन है। बृहस्पति का व्यापक चुम्बकीय क्षेत्र या मेग्नेटोस्फेयर पृथ्वी से १४ गुना शक्तिशाली है | भूमध्यरेखा पर ४.२ गॉस ( ०.४२ मिली टेस्ला mT ) से लेकर ध्रुवों पर १०-१४ गॉस ( १.०-१.४ मिली टेस्ला mT ) तक का विचरण इसे सौरमंडल का सबसे शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र बनाता है
  5. इसे अपनी धुरी पर चक्कर लगाने में 10 घंटा (सबसे कम) और सूर्य की परिक्रमा करने में 12 वर्ष लगते हैं।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण



स्कंद पुराण में बताया गया है कि बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं और इन्होंने प्रभास तीर्थ के तट शिव की कठोर तपस्या प्राप्त कर देव गुरू का पद और ग्रहों में स्थान प्राप्त किया. अपने ज्ञान के बल पर यह देवताओं को यज्ञ भाग दिलाते हैं.
गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश तत्त्व माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास, और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। गुरु पिछले जन्मों के कर्म, धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतानों से संबंधित विषयों के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। यह शिक्षण, शिक्षा और ज्ञान के प्रसार से संबद्ध है। यह दयालु हैं, अपने भक्तों को बुद्धि एवं ज्ञान प्रदान कर सद्मार्ग पर ले जाते हैं और सुख व सम्मान दिलाते हैं.
नवग्रहों में बृहस्पति ग्रह सबसे बड़ा और प्रभावशाली माना गया है. गुरू को शुभ ग्रहों के रूप में मान्यता प्राप्त है. गुरू को शुभता, सत्यता, न्याय, सद्गुण व सुख देने वाला गह माना गया है.
गुरु को जीव भी कहा गया है ब्रह्मा की उपाधि भी दी गयी है इसके बिना संसार की चाल ही समाप्त हो जाती है.
तत्त्व
आकाश
रंग
पीला
लिंग
पुल्लिंग
वस्त्र
पीला
धातु
सोना
स्वाद
मीठा
ऋतु
हेमंत अथवा शिशिर
वेद
ऋग्वेद
दिशा
ईशान (उत्तर-पूर्व)
रत्न
पुखराज
राशि
धनु और मीन
उच्च राशि
कर्क
नीच राशि
मकर
नक्षत्र
विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद
मित्र ग्रह
सूर्य, चन्द्र और मंगल
शत्रु ग्रह
बुध, शुक्र
सम ग्रह
शनि, राहु, केतु
भाव कारक
द्वितीय, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश भाव (२, ५, ९, १०, ११)


रोग
अशुभ गुरु शरीर में कफ, धातु एवं चर्बी (मोटापा) की वृद्धि करता है। मधुमेह, गुर्दे का रोग, सूजन, मूर्च्छा, हर्निया, कान के रोग, स्मृति विकार, जिगर के रोग, पीलिया, फेफड़ों के रोग, मष्तिस्क की रक्तवाहिनियों के रोग, हृदय को धक्का पहुंचना (Heart Attack), पेट खराब करता है |
गुरु ग्रह और आजीविका
गुरु वृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक, मैनेजर, एमएलए, मंदिर के पुजारी, यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी, प्रसिद्द राजनेता के गुण आदि बनाता है. दशमेश यदि गुरु के नवांश में हो तो ब्राह्मणों व देवताओं के आश्रय से अध्यापक वृत्ति से, पुराण धर्म ग्रंथ, नीति मार्ग, उपासना, धर्मोपदेश से जीविका का ज्ञान होता है। दान-पुण्य, न्यायधीशत्व या ब्याज लेने से जीविका चलती है।


विशेष बातें
  1. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति बृहस्पति से प्रभावित होते हैं वे कफ प्रकृति के होते हैं और वे मोटे होते हैं. इनकी आवाज़ भारी होती है और आंखें एवं बाल भूरे अथवा सुनहरे रंग के होते हैं. बृहस्पति से प्रभावित व्यक्ति धार्मिक, आस्थावान, दर्शनिक, विज्ञान में रूची रखने वाले एवं सत्यनिष्ठ होते हैं.
  2. बृहस्पति लग्न मे बैठा हो, तो बली होता है और यदि चन्द्रमा के साथ कही बैठा हो, तो चेष्ठाबली होता है l
  3. गुरु सूर्य का परम मित्र है, दोनो के संयोग से जीवात्मा का संयोग माना जाता है. गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा.
  4. ये बात बहुत कम ज्योतिषी जानते हैं की गुरु ब्याज (सूद) द्वारा भी धन लाभ कराता है।
  5. कहते हैं लग्न में बैठा बलवान गुरु कुंडली के एक लाख दोषों को दूर करता है
  6. गुरु के विषय में एक भ्रान्ति बहुत प्रचलित है की गुरु जिस भाव/घर में बैठता है उसका नाश करता है।  मैं पूछता हूँ हम अपने घर में गुरु को शुभ आशीर्वाद लेने के लिए बुलाते हैं या अपने घर को खराब करने। सही श्लोक यह कहता है की की अगर गुरु शनि के घर में है तो उस घर का नाश करता है क्योंकि शनि को गुरु का आदर करना शायद कम आता है
“ जीव क्षेत्रे यदा शनि:, शनि क्षेत्रे यदा जीव:
स्‍थान हानि करो जीव:, स्‍थान वृद्धि करो शनि: “
  1. चन्द्र से षष्टम भाव में बैठा गुरु सर्वदा अशुभ ही होता है अगर स्वगृही न हो
  2. गुरु के साथ शनि हो और इन दोनों ग्रहों में से किसी का सम्बन्ध नवम भाव से हो तो जातक सांसारिक जीवन के प्रति उदासीन होता है और यदि दोनों ग्रह नवम भाव में हो तो जातक सन्यासी तक बन जाता है।


गुरु ग्रह की अनुकूलता हेतु



आराध्य देव- ब्रह्म, विष्णु तथा इंद्र


वैदिक उपाय : गुरु की अनुकूलता हेतु गुरु के वैदिक मंत्र का उन्नीस हजार जप करना चाहिए।
वैदिक मंत्र -  "ऊँ बृहस्पते अतियदर्योअर्ध्नाद्युमद्धि भातिक्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छवसऽऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं द्येहिचित्रम्।"


तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः (ख) ऊँ बृं बृहस्पत्यै नमः
गुरु के किसी तांत्रिक मंत्र का छिहत्तर हजार जप करना चाहिए।


हवन : अश्वस्थ (पीपल) की लकड़ी से हवन करना चाहिए।


दान : पीला अन्न, पीला वस्त्र, सोना, घृत, पीला फूल, पीला फल, पुखराज, हल्दी, कपड़ा, पुस्तक, शहद, नमक, चीनी, भूमि, छत्र, दक्षिणा आदि।


औषधि स्नान : मालती पुष्प, पीला चंपा फूल, सरसों, पीली मुलहट्टी, शहद।


व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से यह व्रत प्रारंभ करके तीन वर्ष या सोलह गुरुवार को लगातार किया जाता है। इस व्रत को रखने वाले दिन में पीला वस्त्र धारण कर बृहस्पति के बीज मंत्र का एक सौ आठ माला, तीन माला या ग्यारह माला जप कर पीले फूल और बेसन के गुड़ से लड्डू बना कर, या गुड़ में दूध चावल मिला कर खीर को (केसरयुक्त कर) भोग लगा कर भोजन करें। अंतिम गुरुवार को पूर्णाहुति हवन कर गरीब ब्राह्मण को भोजन करा कर समापन करें। (हवन समिधा ऊपर वर्णित है)


ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु गुरु यंत्र : गुरुवार को भोजपत्र पर हल्दी से अनार की कलम से लिख कर अथवा गुरु पुष्य, रवि पुष्य, सर्वाथ सिद्धी योग में ताम्र या स्वर्ण पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के गले या बांह में धारण करना चाहिए।


रत्न धारण : पीला पुखराज 5 रत्ती स्वर्ण में मढ़वा कर गुरुवार को प्रातः काल कच्चे दूध से धो कर, गंगा जल से शुद्ध करा के किसी पंडित से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, या गुरु मंत्र को निन्यान्वे बार जप कर धारण करना चाहिए। पुखराज तभी पहना जाए जब गुरु कारक ग्रह हो


औषधि धारण : भृंगराज की पत्ती, या हल्दी की गांठ पीले कपड़े में सी कर व पीले धागे में लगा कर, गले में या सीधे हाथ की बांह में धारण करनी चाहिए।


रुद्राक्ष धारण : 5 मुखी रुद्राक्ष


उपाय  
  1. गुरु को बलवान करने के लिए सबसे प्रभावी उपाय है गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा कराना। हल्दी युक्त जल समर्पित करें।
  2. गुरु को बलवान बनाने के लिए विष्णु मंदिर में जाकर गुरुवार के दिन पीले रंग की मिठाई का प्रसाद चढ़ाए और वह प्रसाद गरीबों में बांटे।
  3. गणेश जी को सफ़ेद फूल चडाने से गुरु ग्रह मजबूत होगा
  4. बरगद के पेड़ में हर गुरुवार हल्दी युक्त कच्चा दूध चढ़ाएं।
  5. यदि संभव हो तो केले की जड़ गुरु-पुष्य योग में अपनी दाहिनी बांह पर बांधें। ये व्यापार की वृद्धि में सहायक होगा।
  6. पीली कदली के पुष्पों को घर में लगाएं और गरीबों को पीली वस्तु और पुस्तकें दान करें।
  7. गुरुवार को केले के पेड़ में हल्दी, पीला चावल, चना, दाल, गुड़, लड्डू और पीले फूल से पूजन करना चाहिए।
  8. गुरुवार के दिन गाय को बेसन के लड्डू  खिलायें
  9. पीपल में जल डालें।
  10. ब्रह्म की आराधना करें तथा निस्संतान, संतान के लिए हरि (विष्णु) की भी आराधना करें।
  11. भोजन में केसर का प्रयोग करें और स्नान के पश्चात प्रतिदिन नाभि तथा मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं I
  12. श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  13. कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए
  14. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
  15. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
  16. किसी ब्राह्मण को बेसन के लड्डू और केसर मिली खीर का भोजन कराएं।
  17. गुरुवार को गुरु दोष शांत करने के लिए ये 8 खास सामग्री गुड़,चने की दाल, केले, पीले फूल, चन्दन या पीले वस्त्र, हल्दी, पीले रंग की मिठाई और गाय का घी गुरु बृहस्पति की उपासना करें।
  18. यदि गुरु और केतु की युति हो तो एक पीला बेदाग़ निम्बू ले और उसे थोडा काट दे यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि निम्बू के दो टुकड़े न हो और इस निम्बू को चलते पानी में बहा दे ! आप ऐसा 43 दिन लगातार करे आपका योग भंग हो जायेगा !
  19. गुरु बृहस्पति की प्रतिमा की गंध, अक्षत, फूल से पूजा कर धूप व दीप जला पीले आसन पर बैठ नीचे लिखा बृहस्पति कवच बोलें-
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुर पूजितम्।
अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम्।।
बृहस्पति: शिर: पातु ललाटं पातु में गुरु:।
कर्णौ सुरुगुरु: पातु नेत्रे मेंभीष्टदायक:।।
जिह्वां पातु सुराचायो नासां में वेदपारग:।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कण्ठं मे देवता शुभप्रद:।।
भुजवाङ्गिरस: पातु करौ पातु शुभप्रद:।
स्तनौ मे पातु वागीश: कुक्षिं मे शुभलक्षण:।।
नाभिं देवगुरु: पातु मध्यं सुखप्रद:।
कटिं पातु जगदवन्द्य: ऊरू मे पातु वाक्पति:।।
जानु जङ्गे सुराचायो पादौ विश्वात्मकस्तथा।
अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन् मे सर्वतोगुरु:।।
इत्येतत कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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