अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब
में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है।
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-
इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।
दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।
दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।
दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन[7] ठीक हो जाता है।
इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।
यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।
कुँए वाली दूब पीसकर मिश्री के साथ लेने से पथरी में लाभ होता है।
दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।
दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।
इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है। बैठा हुआ तालू ऊपर चढ़ जाता है।[8]
दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
दस्त-आरभिक अवस्था मे। पेचिश के साथ, रक्त मिश्रित पतला और जलीय मल , भूख मे कमी तथा पित्ग्रस्त मितली। कोलाइटिस मे प्रभावी। इसके अलावा खूनी पेचिश मे भी प्रभावी है.
7- ↑ उल्टी
8- ↑ दूब के औषधीय प्रयोग (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अप्रैल, 2013।
दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है।
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-
इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।
दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।
दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।
दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन[7] ठीक हो जाता है।
इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।
यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।
कुँए वाली दूब पीसकर मिश्री के साथ लेने से पथरी में लाभ होता है।
दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।
दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।
इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है। बैठा हुआ तालू ऊपर चढ़ जाता है।[8]
दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
दस्त-आरभिक अवस्था मे। पेचिश के साथ, रक्त मिश्रित पतला और जलीय मल , भूख मे कमी तथा पित्ग्रस्त मितली। कोलाइटिस मे प्रभावी। इसके अलावा खूनी पेचिश मे भी प्रभावी है.
7- ↑ उल्टी
8- ↑ दूब के औषधीय प्रयोग (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अप्रैल, 2013।
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