Monday, July 27, 2015

चाणक्य नीति: चार बातों से परखिए स्त्री और पुरुष का मिजाज

चाणक्य नीति: चार बातों से परखिए स्त्री और पुरुष का मिजाज
अर्थशास्त्र और कूटनीति का ज्ञान देने वाले धर्मशास्त्र के मर्मज्ञ कौटिल्य यानी आचार्य चाणक्य ने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर दुनिया को कुछ ऐसी गूढ़ बातें बताईं हैं जो आज के माहौल के हिसाब से भी पते की हैं। आचार्य का कहना था कि अगर आपको किसी भी पुरूष और स्त्री का मिजाज भांपना है तो आप कुछ सवालों के जरिए इन्हें जान सकते हैं। तो जानिए आचार्य ने व्यक्ति के स्वभाव से जुड़ी किन चार महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया है।
त्याग भी भावना हो तो बेहतर-
अगर आपको किसी भी व्यक्ति को परखना हो तो सबसे पहले उसकी त्याग क्षमता को देखना चाहिए। अगर फलां व्यक्ति किसी दूसरे के दुख-सुख के लिए अपने निजी सुख का त्याग कर सकता है तो बेशक वो श्रेष्ठ पुरुष होता है। आचार्य का कहना था कि जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए कुछ भी नहीं करता वो कभी भी भला इंसान नहीं हो सकता है।  
चार्य ने क्या बताया
चरित्रवान हो तो भला-

चरित्र व्यक्ति के स्वभाव का आईना होता है। चरित्रवान व्यक्ति बेदाग और तमाम बुराइयों से मुक्त होते हैं और उनकी श्रेष्ठता औरों से परे होती है। ऐसे व्यक्ति न केवल दूसरों के प्रति गलत भावनाएं पालते हैं बल्कि वो कभी भी अपने मन में अपवित्र भावनाएं भी नहीं आने देते।
गुणी है तो बेहतर है इंसान-
अगर वाकई में किसी को परखना हो तो उस व्यक्ति के गुण देखने चाहिए। वैसे तो हर व्यक्ति में गुण-अवगुण दोनों होते हैं लेकिन अगर आपने अवगुणों के वनस्पत गुण ज्यादा हैं तो आप बेहत इंसान कहलाए जाते हैं। ऐसे में आचार्य ने हिदायत दी है कि अगर किसी व्यक्ति में अवगुण ज्यादा हैं तो उससे दूर रहने में ही भलाई होती है, क्योंकि क्रोध करना, बात-बात पर झूठ बोलना, दूसरों का अपमान करना और अहंकार के कारण वो कभी भी किसी का भला नहीं कर पाते।


कर्म महान तो व्यक्ति महान-
आचार्य का कहना था कि हमे व्यक्ति के कर्मों का भी अवलोकन करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से पैसा कमाता है या अधार्मिक काम करता है तो उन लोगों से दूरी बनाए रखना ही बेहतर होता है। गलत काम करने वाला इंसान अपने आसपास रहने वाले लोगों पर भी बुरा असर डालता है। चाणक्य ने बताया है कि ऐसे लोगों की मित्रता के  कारण हम भी मुश्किलों में आ सकते हैं।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।



















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