Wednesday, July 1, 2015

बच्चों का मानसिक विकास कहानियो का महत्व

बच्चों का मानसिक विकास कहानियां, चित्रकथाएं पढ़ने और पहेलियां सुलझाने के साथ ही माता-पिता और शिक्षकों से बेझिझक बातचीत करने से बढ़ता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार बच्चे के प्रथम 7 वर्ष तक उसे हर तरफ से सहज रूप में जानकारी देना चाहिए। उसमें उत्सुकता और सीखने की लगन को बढ़ाना चाहिए। यदि इस उम्र में उसको बुरे अनुभव होते हैं तो इसका असर उसके भाग्य और भविष्य पर पड़ता है। इसी उम्र में उसके भविष्य का निर्माण हो जाता है।
इसीलिए हम बताना चाहते हैं कि ऐसी कौन-सी किताबें हैं जिनकी कहानियों को बच्चों को सुनाने से उनमें हर तरह का ज्ञान और जानकारी का विकास होता है। इससे उनमें विचार और अनुभव करने की क्षमता का भी विकास होता है।
पंचतंत्र :
संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। पंचतंत्र एक विश्वविख्यात कथा ग्रंथ है।
हितोपदेश :
भारत में रचित विश्‍वप्रसिद्ध किताब हितोपदेश का नाम सभी ने सुना होगा। भारतीय जनमानस और परिवेश से ओतप्रोत इस किताब में उपदेशात्मक कहानियां हैं।
जातक कथाएं :
जातक कथाएं गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की बेहद लोकप्रिय कहानियां हैं। इन कथाओं को बौद्ध धर्म के सभी मतों में संरक्षित किया गया है। सर्वप्रथम इन कथाओं को पाली भाषा में लिखा गया था।
उपनिषद की कथाएं :
वेदों का सार हैं उपनिषद। उपनिषद का सार है गीता। उपनिषद वेदों के अंतिम भाग हैं अतः इन्हें वेदांत भी कहते हैं। उपनिषदों में कई रोचक और शिक्षाप्रद कहानियां हैं जिनका संबंध हमारे जीवन से हैं। हालांकि उपनिषद की सच्ची कहानियां तो हमें उपनिषदों में ही पढ़ने को मिलेंगी।
बेताल या वेताल पच्चीसी :
संस्कृत में लिखी गई 25 कथाओं का एक संग्रह है वेताल पच्चीसी। इसे विक्रम वेताल के नाम से जाना जाता है। विक्रम-बेताल की कहानी हम सब ने बचपन में सुनी है। इसके रचयिता भवभूति ऊर्फ बेताल भट्ट बताए जाते हैं, जो न्याय के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। इस किताब में लेखक ने एक वेताल (भूत समान) के माध्यम से राजा विक्रम की न्यायप्रियता को प्रदर्शित किया है।
सिंहासन बत्तीसी
(संस्कृत नाम सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित) :
सिंहासन बत्तीसी की कथाएं उज्जैन के प्रसिद्ध प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महान सम्राट विक्रमादित्य से जुड़ी हुई हैं, जो कि गंधर्वसेन के पुत्र थे। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परंपरा रही है। सिंहासन बत्तीस भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियां विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
तेनालीराम की कहानियां :
राज कृष्ण देवराय (1509-1529) के समय में विजयनगर सैनिक दृष्टि से दक्षिण भारत का बहुत ही शक्तिशाली राज्य हो गया था। बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में कृष्ण देवराय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है। कृष्ण देवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे जिन्हें 'अष्ट दिग्गज' कहा जाता था। कृष्ण देवराय को 'आंध्र भोज’ की उपाधि प्राप्त थी। कृष्ण देवराय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी था तेनालीराम। असल में इसका नाम रामलिंगम था। तेनाली गांव का होने के कारण इसे तेनालीराम कहा जाता था।
कथासरित्सागर :
कथासरित्सागर नामक ग्रंथ संस्कृत साहित्य का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी रचना कश्मीर में पंडित सोमदेव (भट्ट) ने त्रिगर्त अथवा कुल्लू कांगड़ा के राजा की पुत्री, कश्मीर के राजा अनंत की रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थ 1063 ईस्वी और 1082 ईस्वी के मध्य की थी।
बाल कहानी संग्रह :
हिन्दी बाल कहानियों का उदय भारतेंदु युग से माना जाता है। इस काल की अधिकांश कहानियां अनूदित हैं। इसके लिए वे संस्कृत की कहानियों के लिए आभारी हैं। सर्वप्रथम शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने कुछ मौलिक कहानियां लिखीं। इनमें ‘राजा भोज का सपना’ ‘बच्चों का इनाम’ तथा ‘लड़कों की कहानी’ का उल्लेख किया जा सकता है। आगे चलकर रामायण-महाभारत आदि पर आधारित अनेक कहानियां द्विवेदी युग में लिखी गईं किंतु हिन्दी बाल कहानी अपने स्वर्णिम अभ्युदय के लिए प्रेमचंद की ऋणी है।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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