Tuesday, July 7, 2015

10 चमत्कारिक विद्याएं, अपनाएं और सुखी हो जाएं

ये विद्याएं बदल सकती हैं आपका जीवन। यहां प्रस्तुत कुछ विद्याएं तो सामान्य है जिनको थोड़े से ही प्रयास से हासिल ‍किया जा सकता है..

भागते-दौड़ते जीवन में चमत्कार से ज्यादा जरूरी व्यक्ति खुद को बचाने में लगा है। भारत में वैसे तो कई तरह की सिद्धियों, विद्याओं की चर्चा की जाती है। सिद्धियों में तो अष्ट सिद्धियों की चर्चा बहुत है। लेकिन हम आपको यहां बताते हैं कुछ खास विद्याओं के बारे में जानकारी। इनके बारे में जानकर आप अपना जीवन सुंदर और सुखी बना सकते हैं।
यहां प्रस्तुत कुछ विद्याएं तो सामान्य है जिनको थोड़े से ही प्रयास से हासिल ‍किया जा सकता है लेकिन कुछ तो बहुत ही कठिन है। हालांकि दोनों ही तरह की विद्याओं के बारे में किसी योग्य जानकार या गुरु के सानिध्य में रहकर ही यह विद्या सिखना चाहिए। शुरुआती 12 विद्याएं तो सामान्य है आप बस उन्हें ही जानकर और उन पर अमल करके अपने जीवन का संकट मुक्त और सुखी बना सकते हैं।

पहली चमत्कारिक विद्या...
आत्मबल की शक्ति : योग साधना करें या जीवन का और कोई कर्म करें। आत्मबल की शक्ति या कहें कि मानसिक शक्ति का सुदृढ़ होना जरूरी है तभी हर कार्य में आसानी से सफलता मिल सकती है। आत्मबल की शक्ति इतनी शक्तिशाली रहती है कि कभी-कभी व्यक्ति की आंखों में झांककर ही उसका आत्मबल तोड़ दिया जाता है।

कैसे प्राप्त होती है आत्मबल की शक्ति : यम और नियम का पालन करने के अलावा मैत्री, मुदिता, करुणा और उपेक्षा आदि पर संयम करने से आत्मबल की शक्ति प्राप्त होती है। 
   
दूसरी चमत्कारिक विद्या...

उपवास सिद्धि : कंठ के कूप में संयम करने पर भूख और प्यास की निवृत्ति हो जाती है अर्थात भूख और प्यास नहीं लगती। इसे कुछ क्षेत्रों में हाड़ी विद्या भी कहते हैं। यह विद्या पौराणिक पुस्तकों में मिलती है। इस विद्या को प्राप्त करने पर व्यक्ति को भूख और प्यास की अनुभूति नहीं होती है और वह बिना खाए- पिए बहुत दिनों तक रह सकता है।

कंठ की कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता व अनाहार सिद्धि होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र, जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं, को कंठकूप कहते हैं। कंठ के इस कूप और नाड़ी के कारण ही भूख और प्यास का अहसास होता है।

कैसे प्राप्त करें यह विद्या : इस कंठ के कूप में संयम प्राप्त करने के लिए शुरुआत में प्रतिदिन प्राणायाम और भौतिक उपवास का अभ्यास करना जरूरी है।

तीसरी चमत्कारिक विद्या...

बलशाली शरीर : कहते हैं कि शरीर है, तो सब कुछ है। पहला सुख निरोगी काया। यदि तोंद निकली है तो समझें कि आप शरीर पर अत्याचार कर रहे हैं। शरीर को सेहतमंद और बलशाली बनाने के लिए योगासन का अभ्यास किया जा सकता है। इससे पूर्व आहार संयम जरूरी है।

योग शास्त्रों में उल्लेख है कि प्राणायाम का अभ्यास करते हुए बल में संयम करने से व्यक्ति बलशाली बन जाता है। बलशाली अर्थात जैसे भी बल की कामना करें, वैसा बल उस वक्त प्राप्त हो जाता है जैसे कि उसे हाथीबल की आवश्यकता है तो वह प्राप्त हो जाएगा।

कैसे होगी यह शक्ति प्राप्त : आहार संयम के साथ ही योगासन करते हुए प्राणायाम करें। धीरे-धीरे महसूस करें कि शरीर में बल का संचय हो रहा है। सोच से संचालित होने वाली इस शक्ति को बल संयम कहते हैं। आपने देख होगा कि सैकड़ों ईंटों को अपने हाथों से फोड़ने वाले लोग पहले हाथों में बल भरने का कार्य करते हैं। इसे ही बल में संयम करना कहते हैं।

चौथी चमत्कारिक विद्या...

स्थिरता शक्ति : मन, शरीर या मस्तिष्क किसी कारणवश बेचैन रहता है। मानसिक तनाव के कारण भी शरीर और मन में अस्थिरता बनी रहती है। शरीर और चित्त की स्थिरता आवश्यक है अन्यथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफलता तो मिलती ही है, अन्य तरह की विद्याओं में भी गति नहीं हो सकती। 

कैसे पाएं स्थिरता की शक्ति : कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र जिसके माध्यम से उदर में वायु और आहार आदि जाते हैं, उसे कंठकूप कहते हैं। 

छोटा सा प्रयोग : सिद्धासन में बैठकर आंखें बंद करें। अब अपनी जीभ को एकदम से स्थिर कर लें। दूसरा आप जीभ को तालू से चिपकाकर भी ध्यान कर सकते हैं।

पांचवीं चमत्कारिक विद्या...

उदान शक्ति : उदान वायु के जीतने पर योगी को जल, कीचड़ और कंकर तथा कांटे आदि पदार्थों का स्पर्श नहीं होता और मृत्यु भी वश में हो जाती है।

कैसे सिद्ध करें उदान वायु को : कंठ से लेकर सिर तक जो व्यापक है वही उदान वायु है। प्राणायाम द्वारा इस वायु को साधकर यह सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। उदान वायु के सिद्ध होने पर व्यक्ति की उम्र लंबी होने लगती है, आंखों की ज्योति भी बढ़ती है, श्रवण इंद्रियां भी मजबूत हो जाती हैं।
 छठी चमत्कारिक विद्या...

भाषा सिद्धि : आजकल बहुत तरह की भाषा का ज्ञान जरूरी है। भाषा के ज्ञान से ही आपके ज्ञान का बहुत‍ तेजी से विस्तार होता है। व्यक्ति को कम से कम 5 भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्यों की भाषा तो ठीक है, लेकिन यदि आपको सभी प्राणियों की भाषा का भी ज्ञान होने लगे तो... 

कैसे प्राप्त करें भाषा सिद्धि : हमारे मस्तिष्क की क्षमता अनंत है। शब्द, अर्थ और ज्ञान में जो घनिष्ठ संबंध है उसके विभागों पर संयम करने से 'सब प्राणियों की वाणी का ज्ञान' हो जाता है अर्थात ध्वनि पर संयम करने से उसके अर्थों को जाना जा सकता है।

सातवीं चमत्कारिक विद्या...

समुदाय ज्ञान शक्ति : शरीर के भीतर और बाहर की स्थिति का ज्ञान होना आवश्यक है। इससे शरीर को दीर्घकाल तक स्वस्थ और जवान बनाए रखने में मदद मिलती है।

कैसे प्राप्त करें यह विद्या : नाभि चक्र पर संयम करने से योगी को शरीर स्थित समुदायों का ज्ञान हो जाता है अर्थात कौन-सी कुंडली और चक्र कहां है तथा शरीर के अन्य अवयव या अंग की स्थिति कैसी है, इस तरह का ज्ञान होने पर व्यक्ति खुद ही शरीर को स्वस्थ करने में सक्षम हो जाता है।

आठवीं चमत्कारिक विद्या...

तेजपुंज शक्ति : तेजपुंज शक्ति को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का शरीर सोने जैसा दमकने लगता है। वह पूर्ण रूप से स्वस्थ रहकर अच्छी अनुभूति का अहसास करता है।

कैसे प्राप्त करें यह विद्या : समान वायु को वश में करने से योगी का शरीर ज्योतिर्मय हो जाता है। नाभि के चारों ओर दूर तक व्याप्त वायु को समान वायु कहते हैं। इस वायु पर योगासन, प्राणायाम और ध्यान द्वारा संयम किया जा सकता है।

नौवीं चमत्कारिक विद्या...

चित्त ज्ञान शक्ति : नए और पुराने नकारात्मक भाव और विचार हमारे चित्त की वृत्तियां बन जाते हैं जिनका शरीर और मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

कैसे प्राप्त करें : हृदय में संयम करने से योगी को चित्त का ज्ञान होता है। चित्त में ही नए-पुराने सभी तरह के संस्कार और स्मृतियां होती हैं। चित्त का ज्ञान होने से चित्त की शक्ति का पता चलता है।

दसवीं चमत्कारिक विद्या...

काड़ी विद्या : इस विद्या को प्राप्त करने पर कोई व्यक्ति ऋतुओं (बरसात, सर्दी, गर्मी आदि) के बदलाव से प्रभावित नहीं होता है। इस विद्या की प्राप्ति के बाद चाहे वह व्यक्ति बर्फीले पहाड़ों पर बैठ जाए, पर उसको ठंड नहीं लगेगी और यदि वह अग्नि में भी बैठ जाए तो उसे गर्माहट की अनुभूति नहीं होगी।

कैसे प्राप्त करें : हठयोग की क्रियाओं और प्राणायाम को साधने से यह विद्या सहज ही प्राप्त हो जाती है।

बारहवीं चमत्कारिक विद्या...

निरोध परिणाम सिद्धि : इंद्रिय संस्कारों का निरोध कर उस पर संयम करने से 'निरोध परिणाम सिद्धि' प्राप्त होती है। यह योग साधक या सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक के लिए जरूरी है अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता।

निरोध परिणाम सिद्धि प्राप्ति का अर्थ है कि अब आपके चित्त में चंचलता नहीं रही। निश्चल अकंप चित्त में ही सिद्धियों का अवतरण होता है। इसके लिए अपने विचारों और श्वासों पर लगातार ध्यान रखें। विचारों को देखते रहने से वे कम होने लगते हैं। विचारशून्य मनुष्य ही स्थिर चित्त होता है।

तेरहवीं चमत्कारिक विद्या...

दूसरों के मन को भांपना : इस शक्ति को योग में मन:शक्ति योग कहते हैं। इसके अभ्यास से दूसरों के मन की बातें जानी जा सकती हैं। ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के चित्त का ज्ञान होता है। यदि चित्त शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी।

ज्ञान की स्थिति में संयम का अर्थ है कि जो भी सोचा या समझा जा रहा है, उसमें साक्षी रहने की स्थिति। ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है।

चौदहवीं चमत्कारिक विद्या...

उड़ने की शक्ति : योग द्वारा प्रथम 3 माह तक लगातार ध्यान करते हुए शरीर और आकाश के संबंध में संयम करने से लघु अर्थात हल्की रुई जैसे पदार्थ की धारणा से आकाश में गमन करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।

इस शक्ति को हासिल करने के लिए यम और नियम का पालन करना जरूरी है। साथ ही संयमित भोजन, वार्तालाप, विचार और भाव पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी होता है।


पंद्रहवीं चमत्कारिक विद्या...

अंतर्ध्यान शक्ति : इसे आप गायब होने की शक्ति भी कह सकते हैं। विज्ञान अभी इस तरह की शक्ति पर काम कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में व्यक्ति गायब होने की कोई तकनीकी शक्ति प्राप्त कर ले। 

योग अनुसार कायागत रूप पर संयम करने से योगी अंतर्ध्यान हो जाता है। फिर कोई उक्त योगी के शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस को जान नहीं सकता। संयम करने का अर्थ होता है कि काबू में करना हर उस शक्ति को, जो अपन मन से उपजती है।

यदि यह कल्पना लगातार की जाए कि मैं लोगों को दिखाई नहीं दे रहा हूं तो यह संभव होने लगेगा। कल्पना यह भी की जा सकती है कि मेरा शरीर पारदर्शी कांच के समान बन गया है या उसे सूक्ष्म शरीर ने ढांक लिया है। यह धारणा की शक्ति का खेल है। भगवान शंकर कहते हैं कि कल्पना से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कल्पना की शक्ति को पहचानें। 

सोलहवी चमत्कारिक विद्या...

पूर्व जन्म को जानना : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं, तब आंखें बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे, तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।

दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाएं। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मेमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।

सत्रहवीं चमत्कारिक विद्या...

दिव्य श्रवण शक्ति : समस्त स्रोत और शब्दों को आकाश ग्रहण कर लेता है, वे सारी ध्वनियां आकाश में विद्यमान हैं। आकाश से ही हमारे रेडियो या टेलीविजन ये शब्द पकड़कर उसे पुन: प्रसारित करते हैं। कर्ण-इंद्रियां और आकाश के संबंध पर संयम करने से योगी दिव्य श्रवण को प्राप्त होता है।

अर्थात यदि हम लगातार ध्‍यान करते हुए अपने आसपास की ध्वनि को सुनने की क्षमता बढ़ाते जाएं और सूक्ष्म आयाम की ध्वनियों को सुनने का प्रयास करें तो योग और टेलीपैथिक विद्या द्वारा यह सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।

अठारहवीं चमत्कारिक विद्या...

कपाल सिद्धि : सूक्ष्म जगत को देखने की सिद्धि को कपाल सिद्धि योग कहते हैं। कपाल की ज्योति में संयम करने से योगी को सिद्धगणों के दर्शन होते हैं। मस्तक के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं।

ब्रह्मरंध्र के जाग्रत होने से व्यक्ति में सूक्ष्म जगत को देखने की क्षमता आ जाती है। हालांकि आत्म-सम्मोहन योग द्वारा भी ऐसा किया जा सकता है। बस जरूरत है तो नियमित प्राणायाम और ध्यान की। दोनों को नियमित करते रहने से साक्षीभाव गहराता जाएगा, तब स्थि‍र चित्त से ही सूक्ष्म जगत देखने की क्षमता हासिल की जा सकती है।

उन्नीसवीं चमत्कारिक विद्या...

प्रतिभ शक्ति : प्रतिभ में संयम करने से योगी को संपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति होती है। ध्यान या योगाभ्यास करते समय भृकुटि के मध्‍य तेजोमय तारा नजर आता है, उसे ही प्रतिभ कहते हैं। इसके सिद्ध होने से व्यक्ति को अतीत, अनागत, विप्रकृष्ट और सूक्ष्मातिसूक्ष्म पदार्थों का ज्ञान हो जाता है।

बीसवीं चमत्कारिक विद्या...

ज्योतिष शक्ति : ज्योति का अर्थ है प्रकाश अर्थात प्रकाशस्वरूप ज्ञान। ज्योतिष का अर्थ होता है सितारों का संदेश। संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिस्वरूप है। ज्योतिष्मती प्रकृति के प्रकाश को सूक्ष्मादि वस्तुओं में न्यस्त कर उस पर संयम करने से योगी को सूक्ष्म, गुप्त और दूरस्थ पदार्थों का ज्ञान हो जाता है।

इक्कीसवीं चमत्कारिक विद्या...

परकाय प्रवेश : बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। यह बहुत आसान है। चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है। सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्‍छा जागृत होती है।

शरीर से बाहर मन की स्वाभाविक वृत्ति है। उसका नाम 'महाविदेह' धारणा है। उसके द्वारा प्रकाश के आवरण का नाश हो जाता है। स्थूल शरीर से शरीर के आश्रय की अपेक्षा न रखने वाली जो मन की वृत्ति है, उसे 'महाविदेह' कहते हैं। उसी से ही अहंकार का वेग दूर होता है। उस वृत्ति में जो योगी संयम करता है, उससे प्रकाश का ढंकना दूर हो जाता है।

बाईसवीं चमत्कारिक विद्या...

सर्वज्ञ शक्ति : बुद्धि और पुरुष में पार्थक्य ज्ञान संपन्न योगी को दृश्य और दृष्टा का भेद दिखाई देने लगता है। ऐसा योगी संपूर्ण भावों का स्वामी तथा सभी विषयों का ज्ञाता हो जाता है। संपूर्ण जानकारी के लिए नीचे की लिंक पर क्लिक करें...


भूत और भविष्य का ज्ञान होना बहुत ही आसान है, बशर्ते कि व्यक्ति अपने मन से मुक्त हो जाए। आपने त्रिकालदर्शी या सर्वज्ञ योगी जैसे शब्द तो सुने ही होंगे। कैसे कोई त्रिकालदर्शी बन जाता है?

अंत में कुछ अन्य चमत्कारिक विद्याओं का संक्षिप्त वर्णन...

* कनकघरा विद्या- इस सिद्धि के द्वारा कोई भी असीम धन प्राप्त कर सकता है।

* लोक ज्ञान शक्ति : सूर्य पर संयम से सूक्ष्म और स्थूल सभी तरह के लोकों का ज्ञान हो जाता है।

* नक्षत्र ज्ञान सिद्धि : चंद्रमा पर संयम से सभी नक्षत्रों का पता लगाने की शक्ति प्राप्त होती है।

* इंद्रिय शक्ति : ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अन्वय और अर्थवत्तव नामक इंद्रियों की 5 वृत्तियों पर संयम करने से इंद्रियों का ज्ञान हो जाता है।

* पुरुष ज्ञान शक्ति : बुद्धि पुरुष से पृथक है। इन दोनों के अभिन्न ज्ञान से भोग की प्राप्ति होती है। अहंकारशून्य चित्त के प्रतिबिंब में संयम करने से पुरुष का ज्ञान होता है।

* तारा ज्ञान सिद्धि : ध्रुव तारा हमारी आकाशगंगा का केंद्र माना जाता है। आकाशगंगा में अरबों तारे हैं। ध्रुव पर संयम से समस्त तारों की गति का ज्ञान हो जाता है।

* पंचभूत सिद्धि : पंचतत्वों के स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्तव ये 5 अवस्‍थाएं हैं इसमें संयम करने से भूतों पर विजय लाभ होता है। इसी से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

* मृत संजीवनी विद्या : इस विद्या द्वारा मृत शरीर को भी जीवित किया जा सकता है।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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