'मैक्सिको' शब्द संस्कृत के 'मक्षिका' शब्द से आता है और मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है। जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिंदू धर्म प्रचलित था- कोलंबस तो बहुत बाद में आया। सच तो यह है कि अमेरिका, विशेषकर दक्षिण-अमेरिका एक ऐसे महाद्वीप का हिस्सा था जिसमें अफ्रीका भी सम्मिलित था। भारत ठीक मध्य में था।
अफ्रीका नीचे था और अमेरिका ऊपर था। वे एक बहुत ही उथले सागर से विभक्त थे। तुम उसे पैदल चलकर पार कर सकते थे। पुराने भारतीय शास्त्रों में इसके उल्लेख हैं। वे कहते हैं कि लोग एशिया से अमेरिका पैदल ही चले जाते थे। यहां तक कि शादियां भी होती थीं। कृष्ण के प्रमुख शिष्य और महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा अर्जुन ने मैक्सिको की एक लड़की से शादी की थी। निश्चित ही वे मैक्सिको को मक्षिका कहते थे। लेकिन उसका वर्णन बिलकुल मैक्सिको जैसा ही है।
मैक्सिको में हिंदुओं के देवता गणेश की मूर्तियां हैं, दूसरी ओर इंग्लैंड में गणेश की मूर्ति का मिलना असंभव है। कहीं भी मिलना असंभव है, जब तक कि वह देश हिंदू धर्म के संपर्क में न आया हो, जैसे सुमात्रा, बाली और मैक्सिको में संभव है, लेकिन और कहीं नहीं, जब तक वहां हिंदू धर्म न रहा हो। मैं जो यह कुछ उल्लेख कर रहा हूं, अगर तुम इसके बारे में और अधिक जानकारी पाना चाहते हो तो तुम्हें भिक्षु चमन लाल की पुस्तक ‘हिंदू अमेरिका’ देखनी पड़ेगी, जो कि उनके जीवनभर का शोधकार्य है। (स्वर्णिम बचपन : ओशो- प्रवचनमाला सत्र- 6-नानी का प्रेम… भारत एक सनातन)।
हिंदू और जैन धर्म : अब तक प्राप्त शोध के अनुसार हिंदू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है, लेकिन यह कहना कि जैन धर्म की उत्पत्ति हिंदू धर्म के बाद हुई तो यह उचित नहीं होगा। ऋग्वेद में आदिदेव ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है।
राजा जनक भी विदेही (दिगंबर) परंपरा से थे। वैदिक काल में पहले ऐसा था कि परिवार में एक व्यक्ति ब्राह्मण धर्म में दीक्षा लेता था तो दूसरा जैन। इक्ष्वाकू कुल के लोग हिंदू भी थे और जैन भी। इस देश में दो जड़ें एकसाथ विकसित हुईं। जैसे हमारे दो हाथ हैं जिसके बारे में हम कह नहीं सकते कि पहले कौन से हाथ की उत्पत्ति हुई, उसी तरह जैन पहले या हिंदू? यह कहना अनुचित होगा।
हिंदू धर्म के बाद किस धर्म की उत्पत्ति हुई... ??
हजरत आदम से लेकर अब्राहम और अब्राहम से लेकर मूसा तक की परंपरा यहूदी धर्म का हिस्सा है। ये सभी कहीं न कहीं हिंदू धर्म की परंपरा से जुड़े थे। ऐसा माना जाता है कि राजा मनु को ही यहूदी लोग हज. नूह कहते थे।
यहूदी धर्म के पैगंबर हजरत मूसा
यहूदी धर्म को जानें
प्राचीन धर्मों में से एक
आज से करीब 4000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इजराइल का राजधर्म है। दुनिया के प्राचीन धर्मों में से एक यहूदी धर्म से ही ईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई है। यहूदी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं। मूर्ति पूजा को इस धर्म में पाप समझा जाता है।
पैगंबर अलै. अब्राहम के पोते का नाम हजरत अलै. याकूब था। याकूब का ही दूसरा नाम इजरायल था। याकूब ने ही यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक सम्मिलित राष्ट्र इजरायल बनाया था।
याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा (जूदा) था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म कहलाया। हजरत अब्राहम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं। आदम से अब्राहम और अब्राहम से मूसा तक यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी के पैगंबर एक ही है किंतु मूसा के बाद यहूदियों को अपने अगले पैंगबर के आने का अब भी इंतजार है।
यहोवा : यहूदी अपने ईश्वर को यहवेह या यहोवा कहते हैं। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम ईश्वर ने हजरत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है।
धर्मग्रंथ : यहूदियों की धर्मभाषा 'इब्रानी' (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम 'तनख' है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे 'तालमुद' या 'तोरा' भी कहते हैं। असल में ईसाइयों की बाइबिल में इस धर्मग्रंथ को शामिल करके इसे 'पुराना अहदनामा' अर्थात ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं। तनख का रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच का माना जाता है।
मूसा (मोजेस) : ईसा से लगभग 1,500 वर्ष पूर्व अबराहम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम 'पैगंबर मूसा' का है। मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं। मूसा को ही पहले से ही चली आ रही एक परम्परा को स्थापित करने के कारण यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है।
दस आदेश : मूसा
मिस्र के फराओ के जमाने में हुए थे। ऐसा माना जाता है कि उनको उनकी माँ ने
नील नदी में बहा दिया था। उनको फिर फराओ की पत्नी ने पाला था। बड़े होकर
वे मिस्री राजकुमार बने। बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वे तो यहूदी हैं और
उनका यहूदी राष्ट्र त्याचार सह रहा है और यहाँ यहूदी गुलाम है तो उन्होंने
यहूदियों को इकठ्ठाकर उनमें नई जाग्रती लाई।
मूसा को ईश्वर द्वारा दस आदेश मिले थे। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फराओ को हराकर यहूदियों को आजाद कराया और मिस्र से पुन: उनकी भूमि इसराइल में यहूदियों को पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इसराइल में इस्राइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है।
सुलेमान : अब्राहम और मूसा के बाद दाऊद और उसके बेटे सुलेमान को यहूदी धर्म में अधिक आदरणीय माना जाता है। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इजरायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान का यदूदि जाति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।
यहूदी त्योहार : शुक्कोह, हुनक्का, पूरीम, रौशन-शनाह, पासओवर, योम किपुर।
यरुशलम : येरुशलम इसराइल देश की विवादित राजधानी है। इस पर यहूदी धर्म, ईसाई धर्म औरइस्लाम धर्म, तीनों ही दावा करते हैं, क्योंकि यहीं यहूदियों का पवित्र सुलैमानी मन्दिर हुआ करता था, जो अब एक दीवार मात्र है। यही शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है। यहीं से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे। इसीलिए यह विवाद का केंद्र है। लेकिन असल में येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केंद्र और राजधानी रहा है। यही पर मूसा ने यहूदियों को धर्म की शिक्षा दी थी।
मूसा को ईश्वर द्वारा दस आदेश मिले थे। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फराओ को हराकर यहूदियों को आजाद कराया और मिस्र से पुन: उनकी भूमि इसराइल में यहूदियों को पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इसराइल में इस्राइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है।
सुलेमान : अब्राहम और मूसा के बाद दाऊद और उसके बेटे सुलेमान को यहूदी धर्म में अधिक आदरणीय माना जाता है। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इजरायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान का यदूदि जाति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।
यहूदी त्योहार : शुक्कोह, हुनक्का, पूरीम, रौशन-शनाह, पासओवर, योम किपुर।
यरुशलम : येरुशलम इसराइल देश की विवादित राजधानी है। इस पर यहूदी धर्म, ईसाई धर्म औरइस्लाम धर्म, तीनों ही दावा करते हैं, क्योंकि यहीं यहूदियों का पवित्र सुलैमानी मन्दिर हुआ करता था, जो अब एक दीवार मात्र है। यही शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है। यहीं से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे। इसीलिए यह विवाद का केंद्र है। लेकिन असल में येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केंद्र और राजधानी रहा है। यही पर मूसा ने यहूदियों को धर्म की शिक्षा दी थी।
अन्य पैंगबर : आदम,
अब्राहम के अलावा मान्यता है कि राजा 'मनु' को ही यहूदियों ने 'नूह' माना
है। नूह ने ईश्वर के आदेश पर जल प्रलय के समय बड़ी-सी किश्ती बनाई थी और
उसमें सृष्टि के सभी प्राणियों को रखकर सृष्टि को बचाया था। राजा मनु की
कहानी भी ऐसी ही है।...राजा मनु और नूह...
राजा मनु और नूह...
इंडोनेशिया, जावा, मलेशिया, श्रीलंका आदि द्वीपों के लोगों ने अपनी लोक परम्पराओं में गीतों के माध्यम से इस घटना को आज भी जीवंत बनाए रखा है। इसी तरह धर्मग्रंथों से अलग भी इस घटना को हमें सभी देशों की लोक परम्पराओं के माध्यम से जानने को मिलता है।
नूह की कहानी : उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।
सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया। यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए। केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए। जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा। फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई।
तुम लोग नाव को मेरे सींग से बाँध देना। तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूँगा। उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी ‘नौकाबंध’ से बाँध दिया। भगवान ने प्रलय समाप्त होने पर वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्त हो वैवस्वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला।
विचारणीय है कि कितने लोग होंगे जो मनु और नूह को एक ही शख्स मानते होंगे या धार्मिक कट्टरता के चलते नहीं भी मानते होंगे। फिर भी यहाँ इतना तो कह ही सकते हैं कि तौरात, इंजिल, बाइबिल और कुरआन से पूर्व ही मत्स्य पुराण लिखा गया था, जिसमें उक्त कथा का उल्लेख मिलता है। यहाँ यह सिद्ध करने का प्रयास नहीं है कि अन्य धर्म ग्रंथों में पुराण से ही ली गई कथा है, जिसे अपने तरीके से गढ़ा। तथ्य यह है कि उक्त घटना का स्थान, समय और परम्परा के मान से अलग-अलग प्रभाव पड़ा और लोगों ने इसे दर्ज किया। यह मानव जाति का इतिहास है न कि किसी धर्म विशेष का।
यहूदी धर्म को जानें
यहूदी इतिहास : यहूदी धर्म का इतिहास करीब 4000 साल पुराना माना जाता है। कहते हैं कि मिस्र के नील नदी से लेकर इराक के दजला-फरात नदी के बीच आरंभ हुआ यहूदी धर्म का इजराइल सहित अरब के अधिकांश हिस्सों पर राज था। मूसा से लेकर सुलेमान तक प्राचीन समय में ही यहूदियों का 'भारत' से गहरा संबंध रहा है इस बात के कई प्रमाण है।
मिस्र पर कुछ समय तक यदुवंशियों का भी राज रहा था। वैसे इसका प्रचीन धर्म इजिप्ट था। ऐसा माना जाता है कि पहले यहूदी मिस्र के बहुदेववादी इजिप्ट धर्म के राजा फराओ के शासन के अधिन रहते थे। बाद में मूसा के नेतृत्व में वे इजरायल आ गए। ईसा के 1100 साल पहले जैकब की 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने थे, जो दो गुटों में बँट गए। पहला 10 कबीलों का बना था वह इजरायल कहलाया और दूसरा जो बाकी के दो कबीलों से बना था वह जुडाया कहलाया। जुडाया पर बेबीलन का अधिकार हो गया। बाद में ई.पू. सन् 800 के आसपास यह असीरिया के अधीन चला गया। असीरिया प्राचीन मेसोपोटामिया का एक साम्राज्य था, जो यह दजला नदी के उपरी हिस्से में बसा था। 10 कबीलों का क्या हुआ पता नहीं चला।
फारस के हखामनी शासकों ने असीरियाइयों को ई.पू. 530 तक हरा दिया तो यह क्षेत्र फारसी शासन में आ गया। यूनानी विजेता सिकन्दर ने जब दारा तृतीय को ई.पू. 330 में हराया तो यहूदी लोग ग्रीक शासन में आ गए। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस के साम्राज्य और उसके बाद रोमन साम्राज्य के अधीन रहने के बाद ईसाईयत का उदय हुआ। इसके बाद यहूदियों को यातनाएँ दी जान लगी।
7वीं सदी में इस्लाम के आगाज के बाद यहूदियों की मुश्किलें और बड़ गई। तुर्क और मामलुक शासन के समय यहूदियों को इजराइल से पलायन करना पड़ा। अंतत: यहूदियों के हाथ से अपना राष्ट्र जाता रहा। मई 1948 में इजराइल को फिर से यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया। दुनिया भर में इधर-उधर बिखरे यहूदी आकर इजरायली क्षेत्रों में बसने लगे। वर्तमान में अरबों और फिलिस्तिनियों के साथ कई युद्धों में उलझा हुआ है एकमात्र यहूदी राष्ट्र इजरायल।
• जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था ।
• मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था।
• ऋषभदेव से पहले कोई जैनी नहीं था ।
• बुद्घ से पहले कोई बुद्धिस्ट नहीं था ।
• गुरु गोविंद सिंह से पहले कोई सिक्ख नहीं था ।
• क्लार मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था ।
लेकिन :--
कृष्ण से पहले ।
राम से पहले ।
जमद्गनि से पहले ।
अत्री से पहले ।
अगस्त्य से पहले ।
पतञ्जलि से पहले ।
कणाद से पहले ।
याज्ञवलक्य से पहले ।
सभी सनातन वैदिक धर्मी थे । क्योंकि एक व्यक्ति विशेष के द्वारा तो मत; पंथ; सम्प्रदाय; रिलिजन; आदि चला करते हैं ।धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं चला करता । वह ईश्वर ने सभी मनुष्यों को समान रूप से वेद के रूप में संविधान दिया है । वैदिक धर्मी बनें । अपने अपने पंथ त्यागें । एक हो जाओ..
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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