Tuesday, June 23, 2015

हिंदुत्व और विज्ञान..

** अवश्य पड़ें**
यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्डवेत्ता ‘कार्ल वेगन’ ने
उनकी पुस्तक “COSMOS” में लिखा है कि-
‘‘विश्व में हिन्दू धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है,जो इस
विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्माण्ड में
उत्पत्ति औरलय की एक सतत प्रक्रिया चल
रही है और यही एक धर्म है जिसने समय के सूक्ष्मतम
सेलेकर वृहदतमनाप, जो सामान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब
64 करोड़ वर्ष के ब्रह्मा के दिन-रात तक
की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय नापों के
निकट है।’’
आपको ये कथा मालूम होगी जिसमे श्री कृष्ण
मिट्टी खाने के बाद माता यसोदा को मुह खोलकर बताते है
तो उसमे आकाश, दिशायें, पहाड़, द्वीप और समुद्रों के
सहित सारी पृथ्वी, बहनेवाली वायु, वैद्युत, अग्नि,
चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल,
जल, तेज, पवन, वियत्, वैकारिक अहंकार के देवता, मन-
इन्द्रिय, पञ्चतन्मात्राएं और तीनों गुण श्रीकृश्ण के
मुखमेंदीख पड़तेहै।जहाँ ये हुआथा आज भी वहस्थान
‘‘ब्रह्माण्ड’’ के नाम से बृज मेंतीर्थ रूप मेंस्थित
है।
इसका सीधा सा अर्थ इतना ही हैकि जिस ब्रह्माण्ड
को आज वैज्ञानिक खोज रहे हैं,वहहजारों-लाखों वर्ष
पूर्व हिन्दूओं को मालूम थे।
सनातन धर्मं हमेशा से ही कहता आ रहा है की कण कणमें
भगवान् है और आज स्विटज़रलेंड में दुनिया की सबसे
बड़ी प्रयोगशाला मेंवैज्ञानिक उसी भगवान् कण (God
Particle)की खोज कर रहे है।
‘‘ततो दिनकरैर्दीप्तै सप्तभिर्मनुजाधिय।
पीयते सलिलं सर्व समुद्रेशु सरित्सु च।।’’ -महाभारत (वन
पर्व 188-67)
इसका अर्थ है कि ‘‘एककल्प अर्थात् 1 हजार
चतुर्युगी की समाप्ति पर आनेवाले कलियुग के
अंतमेंसात सूर्य एकसाथ उदित हो जाते
हैंऔरतबऊष्मा इतनी बढ़जाती है
कि पृथ्वी का सबजलसूखजाता है। हमारी कालगणना सेएक
कल्प का मान 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है।
देखिये आजका विज्ञान क्या कहता है ‘‘नोबल पुरूस्कार
से सम्मानित चन्द्रशेखर के चन्दशेखरसीमा सिद्यांत के
अनुसार यदि किसी तारे का द्रव्यमान 1.4 सूर्यों से
अधिक नहीं है, तो प्रारम्भ मेंकई अरब वर्ष तक
उसका हाईड्रोजन, हीलियम में संघनित होता रहकर,
अग्नि रूपी ऊर्जा उत्पन्न करता रहेगा। हाईड्रोजन
की समाप्ति पर वहतारा फूलकर विशाल लाल दानव (रेड
जायन्ट) बनजायेगा। फिर करीब दसकरोड़ साल तकलाल दानव
की अवस्था मेंरहकर तारा अपनी शेष नाभिकीय
ऊर्जा को समाप्त कर देता है और अन्त में गुठली के
रूप मेंअति सघन द्रव्यमान का पिण्ड रह जाता है।
जिसे श्वेत वामन (व्हाईट ड्वार्फ) कहा जाता है। श्वेत
वामन के एकचम्मच द्रव्य का भार एक टन से भी अधिक
होता है। फिर यही धीरे-धीरे कृष्ण वामन (ब्लेक हॉल)
बनजाता है।
लगभग 5 अरब वर्ष मेंहमारा सूर्य भी लाल दानव
बनजायेगा, इसके विशाल ऊष्मीय विघटन की चपेट मेंबुध
औरशुक्र समा जायेंगे। भीषण तापमान बढ़ जाने
सेपृथ्वी का जीवन जगत लुप्त हो जायेगा औरसबकुछ
जलकरराख हो जायेगा।
महाभारत युग में यह कल्पना कर लेना कितना कठिन था मगर
इस पुरूषार्थ को हमारे पूर्वजों ने सिद्ध किया।
मूलतः सूर्य सिद्धांत ग्रंथ सत्युग
मेंलिखा माना जाता है, वह नष्ट भी हो गया, मगर उस
ग्रन्थ के आधार पर ज्योतिष गणना कर रहे गणनाकारों के
द्वारा पुनः सूर्य सिद्धान्त ग्रन्थ लिखवाया गया, इस
तरह की मान्यता है।
अस्मिन् कृतयुगस्यान्ते सर्वे मध्यगता ग्रहाः।
बिना तुपाद मन्दोच्चान्मेषादौ तुल्य तामिताः।।
इस पदका अर्थ है ‘कृतयुग’ (सतयुग) के अंत
मेंमन्दोच्च को छोड़कर सब ग्रहों का मध्य स्थान
‘मेष’ मेंथा। इसका अर्थ यह हुआकि त्रेता के प्रारम्भ
में सातों ग्रह एक सीध में थे। मूलतः एक चतुर्युगी में
कुल 10 कलयुग होते हैं,जिनमें सतयुग का मान 4 कलयुग,
त्रेतायुग का मान 3 कलयुग, द्वापरयुग का मान दो कलयुग
और कलयुग का मान एक कलयुग है।
वर्तमान कलियुग,महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात
प्रारम्भ हुआ,(२२ मार्च २०१२ संध्या ७ बज कर१० मिनिट
से)५११४ कलि संवत् है। (अर्थात् ई.पू. 3102 वर्ष में20
फरवरी को रात्रि 2 बजकर 27 मिनिट, 30 सेकेण्ड पर कलियुग
प्रारम्भ हुआ।)
‘संवतसर से बहुतपुराना’’
।।जयतु संस्कृतम् । जयतुभारतम् ।।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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