Tuesday, June 23, 2015

तिलक का महत्व

हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्द्ेश्य से भी लगाया जाता है।
                                                                         
स्नान एवं धौत वस्त्र धारण करने के उपरान्त वैष्णव ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैव त्रिपुण्ड, गाणपत्य रोली या सिन्दूर का तिलक शाक्त एवं जैन क्रमशः लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं. धार्मिक तिलक स्वयं के द्वारा लगाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक तिलक दूसरा लगाता है।


योगी सन्यासी ऋषि साधकों तथा इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार भृकुटि के मध्य भाग देदीप्यमान है।

१.ऊर्ध्वपुण्ड्र चन्दन - वैष्णव सम्प्रदायों का कलात्मक भाल तिलक ऊर्ध्वपुण्ड्र कहलाता है. चन्दन, गोपीचन्दन, हरिचन्दन या रोली से भृकुटि के मध्य में नासाग्र या नासामूल से ललाट पर केश पर्यन्त अंकित खड़ी दो रेखाएं ऊर्ध्वपुण्ड्र कही जाती हैं।

श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय में - ऊर्ध्वपुण्ड्र राधिकाचरण चिन्ह् के रूप में धारण किया जाता है. इस सम्प्रदाय में गोस्वामी गण बिन्दु परम्परा तथा सेवक या विरक्तगण बाद परम्परा वाले माने जाते हैं. बिन्दु परम्परा वाले गोस्वामीगण लाल रोली के ऊर्ध्वपुण्ड्र के बीच में श्याम बिन्दु तथा सेवक या विरक्त त्यागी पीत या श्वेत बिन्दु धारण करते हैं।

वैष्णव ऊर्ध्वपुण्ड्र के विषय में पुराणों में दो प्रकार की मान्यताएं मिलती हैं।

नारद पुराण में - इसे विष्णु की गदा का द्योतक माना गया है।

ऊर्ध्वपुण्ड्रोपनिषद में - ऊर्ध्वपुण्ड्र को विष्णु के चरण पाद का प्रतीक बताकर विस्तार से इसकी व्याख्या की है।

इस युग के भक्ति साहित्य के व्याख्याकार नाभादास भी इसी बात को स्वीकार करते हैं. अतः सम्पूर्ण वैष्णव भक्ति वाङ्गमय के इस सत्य को वैष्णव समाज विष्णु के युगल चरण तल की विभूति को ललाट पर धारण कर उसके करूणामय सौन्दर्य को ऊर्ध्वपुण्ड्र के कलात्मक अंकन द्वारा मन, वचन तथा कर्म में उतारता है।

                     
 चन्दन के प्रकार 

१. हरि चन्दन - पद्मपुराण के अनुसार तुलसी के काष्ठ को घिसकर उसमें कपूर, अररू या केसर के मिलाने से हरिचन्दन बनता है।

२.  गोपीचन्दन- गोपीचन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति से प्रभावित होकर द्वारका में गोपी सरोवर का निर्माण किया था, जिसमें स्नान करने से उनको सुन्दर का सदा सर्वदा के लिये स्नेह प्राप्त हुआ था. इसी भाव से अनुप्रेरित होकर वैष्णवों में गोपी चन्दन का ऊर्ध्वपुण्ड्र मस्तक पर लगाया जाता है।

इसी पुराण के पाताल खण्ड में कहा गया है कि गोपीचन्दन का तिलक धारण करने मात्र से ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक पवित्र हो जाता है. जिसे वैष्णव सम्प्रदाय में गोपी चन्दन के समान पवित्र माना गया है।

स्कन्दपुराण में गोमती, गोकुल और गोपीचन्दन को पवित्र और दुर्लभ बताया गया है तथा कहा गया है कि जिसके घर में गोपीचन्दन की मृत्तिका विराजमान हैं। वहाँ श्रीकृष्ण सहित द्वारिकापुरी स्थित है।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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