Wednesday, June 17, 2015

'ॐ' की महिमा




 ॐ = अ+उ+म+ अर्ध तन्मात्रा (ॐ)
ॐ का 'अ' कार स्थूल जगत का आधार है
'उ' कार सूक्ष्म जगत का आधार है
'म' कार कारण जगत का आधार है
अर्ध तन्मात्रा(ॐ)
जो इन तीनों जगत से प्रभावित
नही होता बल्कि तीनो जगत जिससे सत्ता-
स्फूर्ति लेते है फिर भी जिसमे तिलभर भी फर्क
नही पडता, उस परमात्मा की द्योतक है

'ॐ' आत्मिक बल देता है
'ॐ' के उच्चारण से
जीवनशक्ति ऊर्ध्वगामी होती है
इसके सात बार के उच्चारण से शरीर के रोग के
कीटाणु दूर होने लगते है और चित्त से हताशा-
निराशा भी दुर होती है

यही कारण है कि
ऋषि-मुनियों ने सभी मंत्रो के आगे 'ॐ' जोडा है
शास्त्रो में भी 'ॐ'
की बडी भारी महिमा गायी गयी है
भगवान शंकर का मंत्र हो तो: ॐ नमः शिवाय
भगवान गणपति का मंत्र हो तो: ॐ गणेशाय नमः
भगवान राम का मंत्र हो तो: ॐ रामाय नमः
इस प्रकार सब मंत्रो के आगे ॐ तो जुड़ा ही है
पतंजलि महाराज ने कहा है
"तस्य वाचकः प्रणवः"
'ॐ' परमात्मा का वाचक है उसकी स्वाभाविक
ध्वनि है

'ॐ' के रहस्य को जानने के लिए कुछ प्रयोग
करने के बाद
"रूस" के वैज्ञानिक (Scientist)
भी आश्चर्यचकित हो उठे थे
उन्होने प्रयोग (Experiment) करके देखा की
जब व्यक्ति बाहर एक शब्द बोले और अपने
भीतर दूसरे शब्द का विचार करे, तब
उनकी सूक्ष्म मशीन(Machine) में दोनों शब्द
अंकित हो जाते थे

Example
बाहर से 'क' कहा गया हो
और
भीतर विचार 'ग' का किया गया हो तो 'क' और
'ग' दोनों छप जाते थे
यदि बाहर कोई शब्द (Words) नही बोले, केवल
भीतर विचार करे तो विचारा गया शब्द (Word)
भी अंकित हो जाता था .

ध्यान दीजिये सभी लोग केवल एकमात्रा 'ॐ'
ही ऐसा शब्द (Words) था कि व्यक्ति केवल
बाहर से 'ॐ' बोले और अंदर दूसरा ही कुछ विचारे
फिर भी दोनों ओर का 'ॐ' ही अंकित होता था
अथवा
अंदर 'ॐ' का विचार करे और बाहर कुछ भी बोले
तब भी अंदर-बाहर का "ॐ" ही छपता था .

समस्त नामों में "ॐ" का प्रथम स्थान (First
No.) है

प्यारे मुसलमान भाई लोग भी
'अल्ला होऽऽऽ अकबर ...'
कहकर नमाज पढते है जिसमें "ॐ"
की ध्वनी का हिस्सा है

सिख धर्म मे
'एक ओंकार सतिनामु ...'
कहकर उसका लाभ (Profit) उठाया गया है
सिख धर्म का पहला ग्रंथ है
'जपुजी' और 'जपुजी' का पहला वचन है :
एको ओंकार सतिनामु ...
एको ओंकार: परमात्मा एक है
सतिनामु: वही सत् है

जो युगों से सत् था, अभी भी सत् है
और बाद में भी सत् रहेगा,

किसी भी जाति का,
किसी भी देश ,
मत या संप्रदाय का बालक हो,
जब वह पैदा होता है, तब
उसकी पहली ध्वनि (Sound)
"ऊँवाँ... ऊँवाँ... ऊँवाँ..."
कहाँ से आती है ?
उसकी ध्वनी इसी ॐ से उठती है
यह अकार, उकार और मकार से युक्त "ॐ"
समस्त शब्दों की बुनियाद है.

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है
"वेदों में मैं ॐ हूँ"
ॐ नमः

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