Tuesday, June 23, 2015

चीन था हिन्दू राष्ट्र, जानिए कैसे और कब



वैसे तो संपूर्ण पर स्थापित था। जम्बूद्वीप के 9 देश थे उसमें से 3 थे- हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष। उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्‍थान को कहा जा सकता है। हालांकि कुछ हिस्से इसके नेपाल, तिब्बत में हैं। चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्र था। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो में 1000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था, जैसे भारत को भारतवर्ष कहा जाता है।


प्राचीनकाल में चीन कहलाता था 'हरिवर्ष'?

संपूर्ण पर स्वायंभुव मनु के पुत्रों के कुल का राज था। ऋषभदेव स्वायंभुव मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ।

जम्बूदीप के राजा अग्नीघ्र के नौ पुत्र हुए- नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्यमय, कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। राजा आग्नीध ने उन सब पुत्रों को उनके नाम से प्रसिद्ध भूखण्ड दिया।

को मिला आज के का भाग, जो प्राचीन भूगोल के अनुसार जंबूद्वीप का एक भाग या वर्ष था। हरिवर्ष का उल्लेख जैन सूत्रग्रंथ 'जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति' और हिन्दुओं के 'विष्णु पुराण' में मिलता है। 

हरिवर्ष में निषध पर्वत स्थित था। हरिवर्ष को मेरू पर्वत के दक्षिण की ओर माना गया है। हरिवर्ष उत्तरी तिब्बत तथा दक्षिणी चीन का समीपवर्ती भूखंड जान पड़ता है। महाभारत ग्रंथ में हरिवर्ष के उत्तर में इलावृत का उल्लेख है जिसे जम्बूद्वीप का मध्य भाग बताया गया है। दूसरी ओर हरिवर्ष को मानसरोवर, गंधर्वों के देश और हेमकूट पर्वत (कैलाश) के उत्तर में स्थित माना गया है



हरिवर्ण और हिमवर्ष (भारत) के बीच में किंपुरुषवर्ष स्थित था- ‘भारतं प्रथम वर्ष ततः किंपुरुषंस्मृतम्, तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज’।- विष्णु पुराण

राजा अग्नीघ्र के दूसरे पुत्र किम्पुरुष को कैलाश पर्वत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और तिब्बत के इलाके मिले।

राजा अग्नीघ्र के तीसरे पुत्र इलावृत को का मध्य स्थान अर्थात आज का रशिया मिला। पुराणों के अनुसार इलावृत चतुरस्र है। इलावृत मुख्‍यरूप से हिन्दू धर्म का प्रमुख केंद्र था, जहां देवता और असुर रहते थे। मूलत: यह क्षेत्र दानवों का था।

'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- विष्णु पुराण

राजा अग्नीघ्र के चौथे पुत्र को कैस्पिरियन सागर के आसपास के इलाके मिले जिसमें आज के तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किंगिस्तान, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के अलावा अजरबैजान और रूस के कुछ इलाके शामिल हैं।

विष्णुपुराण के अनुसार इस क्षेत्र में चक्षु नदी (वंक्षु या आक्सस या आमू दरया) केतुमाल में प्रवाहित होती है। आमू या चक्षु नदी रूस के दक्षिणी भाग कैस्पियन सागर के पूर्व की ओर के प्रदेश में बहती है। विष्णुपुराण में चक्षु का पश्चिम को ओर और सीता या तरिम नदी को पूर्व की ओर माना है।

राजा अग्नीघ्र के पहले और सबसे बड़े पुत्र नाभि को भारत के क्षेत्र मिले। भारतवर्ष को सबसे पहले हिमवर्ष कहते थे। बाद में इसका नाम अजनाभ खंड हुआ और फिर नाभिखंड हुआ। बाद में नाभि के पुत्र हुए ऋषभ। राजा और ऋषि ऋषभनाथ के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली। ऋषभदेव अपने पुत्र भरत को सत्ता सौंपकर वन चले गए। बाहुबली पहले ही वन चले गए थे। ऐसे में भरत ने सत्ता संभाली और तब से इस क्षे‍त्र का नाम भारत हो गया।


तिब्बत के मंदिरों में विराजित हैं श्रीगणेश

चीन के चारों दिशाओं के द्वार पर हैं गणपति


चीन के प्राचीन हिन्दू मंदिरों में चारों दिशाओं के द्वारों पर गणपति के दर्शन होते हैं।

* पूर्व के गणपति को 'वजू' कहते हैं। उनके हाथ में छोटा छत्र होता है।

* पश्चिम के गणपति को 'वजूवासी' कहते हैं। उनके हाथ में धनुष-बाण है।

* उत्तर के गणेशजी का नाम 'वजमुख विनायक' है, उनके हाथ में तलवार है।

* दक्षिण के गणपति को 'वजू भक्षक' कहते हैं और उनके हाथ में पुष्प माला है।


तिब्बत के हिन्दू और बौद्ध मंदिर :-

* तिब्बत के सैकड़ों हिन्दू मंदिरों और बौद्ध विहारों के पर गणेश की मूर्ति विराजमान है।

* कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से 'गणपति हृदय' नाम मंत्र जपवाया था।

* इसके सिवाए बुद्ध का ही एक चिह्न हाथी है और गणपति का मस्तक भी हाथी का है। इससे बौद्धों के देवता के रूप में गणेश प्रिय रहे होंगे।

* वैसे यहां हिन्दुओं के गणेश और बौद्धों के गजबुद्ध को एक-दूसरे के साथ प्रेम से मिलते हुए दिखाने वाले चित्र और मूर्तिया बहुतायात में उपलब्ध है।  

वैसे वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।

भारतीय प्रदेश अरुणाचल के रास्ते लोग चीन जाते थे और वहीं से आते थे। दूसरा आसान रास्ता था बर्मा। हालांकि लेह, लद्दाख, सिक्किम से भी लोग चीन आया-जाया करते थे, लेकिन तब तिब्बत को पार करना होता था। तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था। यह देवलोक और गंधर्वलोक का हिस्सा था।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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