स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल प्रतीक माना जाता रहा है।
इसीलिए किसी भी शुभकार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाताहै।
स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है।
’सु’ का अर्थ अच्छा,
’अस’ का अर्थ ’सत्ता’ या ’अस्तित्व’
और ’क’ का अर्थ ’कर्त्ता’ या करने वाले से है।
इस प्रकार ’स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ’अच्छा’ या ’मंगल’ करने वाला
सिद्धांतसार के अनुसार उसे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। इसके मध्य भाग को विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरुपित करने की भावना है।
देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिन्ह ही स्वस्तिक के आकार का होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ माना जाता है। यह आकार चारों दिशाओं का द्योतक माना गया है।
स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है।
जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमरीका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का शुभकार्य के प्रारम्भ के समय प्रचलन है।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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