आदि काल से भारत वर्ष में गाय
को माता के समान माना जाता है। गाय
को मां समझ कर उसकी सेवा की जाती है।
गाय वास्तव में सारे जगत की माता है।
‘मातरः सर्व भूतानाम गावः सर्व फल
प्रदाम’ वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के
साथ-साथ और भी कोई फल है तो भी प्रदान
करती है।
गौ-माता पृथ्वी, प्रकृति और
परमात्मा का प्रगट स्वरूप है। स्वयं
भगवान विष्णु ने मनुष्य अवतार धारण कर
गौ सेवा की एवं गोपाल कृष्ण कहलाए,
रामावतार में गौ-माता का रूप पृथ्वी ने
धारण किया, भगवान राम के पूर्वज
महाराजा दिलीप ने
नन्दनी गौ की सेवा कि इसी से रघुवंश
चला, भगवान शिव का वाहन नन्दी है।
आदि तीर्थकंर ऋृषभ देव का चिन्ह बैल है,
गौ-माता में 33 कोटी देवताओं का वास
है। गौ-माता की सेवा ही सच्ची राम-
कृष्ण की सेवा है। जिस घर में गौ-
माता रहती है उस परिवार को मन्दिर
या तीर्थ जाने की आवश्यकता नहीं,
क्योंकि प्रभु स्वयं 24 घण्टे में एक बार
अवश्य उस घर में जाते है इसलिए वह घर स्वयं
मन्दिर हो जाता है। गोबर में लक्ष्मी व
गौमूत्र में गंगा का वास होता है, भगवान
बुद्ध को बुद्धतत्व
की प्राप्ति सुजाता द्वारा प्रदत गौ दूध
की खीर से हुई। बाईबल व कुरान में भी गौ-
माता की महिमा का उल्लेख है।
जिस प्रकार वैज्ञानिकों ने सृष्टि के
रहस्यों की खोजकर आधुनिक विज्ञान
का विकास किया है, उसी प्रकार
आध्यात्मिक मनीषियों ने जीवन और
सृष्टि दोनों के रहस्यों को खोजकर
‘गो विज्ञान’ का विकास किया। वस्तुत
गो-विज्ञान सारी दुनिया को भारत
की अनुपम देन है। भारतीय मनीषियों ने
सम्पूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व,
रक्षण, पोषण, विकास और संवर्धन के लिए
अनिवार्य बना दिया था। ‘गो दुग्ध’ ने जन
समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्विक
बुद्धि प्रदान की। गोबर गोमूत्र ने
खेती को पोषण दिया, बैल उर्जा ने कृषि,
भारवाहन, परिवहन तथा ग्रामोद्योग के लिए
सम्पूर्ण टेक्नालाॅजी विकसित करने में
मदद की। इसीलिए गौ सेवा व गोचर भारतीय
जीवन शैली व अर्थव्यवस्था के सदैव
केन्द्र बिन्दु रहे है। गांव प्रधान व
कृषि प्रधान जैसी विशिष्टताओं वाले
अपने राष्ट्र के लिए इसका कोई विकल्प
नही है।
वैदिक सनातन धर्म में गाय को माता के
समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गाय
सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ-
चतुष्टय की सिद्धि प्रदान करने वाली है।
मानव जाति की समृद्धि गाय
की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
यह सर्व विदित है कि हमारे देश कि गाय
साक्षात लक्ष्मी है। आज के संदर्भ में
लक्ष्मी की व्याख्या रूपये पैसे से
की जा रही है। इस संदर्भ में एक देशी गाय
को देखंे तो वह अकेली प्रति माह
लाखों रूपये देने में सक्षम है। इस विषय
पर पिछले 15 वर्षों से देश विदेश के कई
केन्द्रों में शोध चल रहें हैं। इसके
मध्यनजर किये गये हजारों प्रयोग
सत्यापित करते हैं कि एक देशी गाय
प्रतिदिन गौबर, गौमूत्र और दूध के माध्यम
से लगभग 3 हजार रूपये की अमृत जीवन रक्षक
औषधियां प्रदान करती है। यदि हम आर्थिक
दृष्टिकोण को ध्यान में रखें
तो भी गौवंश हमारे लिए बहुत उपयोगी है।
को माता के समान माना जाता है। गाय
को मां समझ कर उसकी सेवा की जाती है।
गाय वास्तव में सारे जगत की माता है।
‘मातरः सर्व भूतानाम गावः सर्व फल
प्रदाम’ वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के
साथ-साथ और भी कोई फल है तो भी प्रदान
करती है।
गौ-माता पृथ्वी, प्रकृति और
परमात्मा का प्रगट स्वरूप है। स्वयं
भगवान विष्णु ने मनुष्य अवतार धारण कर
गौ सेवा की एवं गोपाल कृष्ण कहलाए,
रामावतार में गौ-माता का रूप पृथ्वी ने
धारण किया, भगवान राम के पूर्वज
महाराजा दिलीप ने
नन्दनी गौ की सेवा कि इसी से रघुवंश
चला, भगवान शिव का वाहन नन्दी है।
आदि तीर्थकंर ऋृषभ देव का चिन्ह बैल है,
गौ-माता में 33 कोटी देवताओं का वास
है। गौ-माता की सेवा ही सच्ची राम-
कृष्ण की सेवा है। जिस घर में गौ-
माता रहती है उस परिवार को मन्दिर
या तीर्थ जाने की आवश्यकता नहीं,
क्योंकि प्रभु स्वयं 24 घण्टे में एक बार
अवश्य उस घर में जाते है इसलिए वह घर स्वयं
मन्दिर हो जाता है। गोबर में लक्ष्मी व
गौमूत्र में गंगा का वास होता है, भगवान
बुद्ध को बुद्धतत्व
की प्राप्ति सुजाता द्वारा प्रदत गौ दूध
की खीर से हुई। बाईबल व कुरान में भी गौ-
माता की महिमा का उल्लेख है।
जिस प्रकार वैज्ञानिकों ने सृष्टि के
रहस्यों की खोजकर आधुनिक विज्ञान
का विकास किया है, उसी प्रकार
आध्यात्मिक मनीषियों ने जीवन और
सृष्टि दोनों के रहस्यों को खोजकर
‘गो विज्ञान’ का विकास किया। वस्तुत
गो-विज्ञान सारी दुनिया को भारत
की अनुपम देन है। भारतीय मनीषियों ने
सम्पूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व,
रक्षण, पोषण, विकास और संवर्धन के लिए
अनिवार्य बना दिया था। ‘गो दुग्ध’ ने जन
समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्विक
बुद्धि प्रदान की। गोबर गोमूत्र ने
खेती को पोषण दिया, बैल उर्जा ने कृषि,
भारवाहन, परिवहन तथा ग्रामोद्योग के लिए
सम्पूर्ण टेक्नालाॅजी विकसित करने में
मदद की। इसीलिए गौ सेवा व गोचर भारतीय
जीवन शैली व अर्थव्यवस्था के सदैव
केन्द्र बिन्दु रहे है। गांव प्रधान व
कृषि प्रधान जैसी विशिष्टताओं वाले
अपने राष्ट्र के लिए इसका कोई विकल्प
नही है।
वैदिक सनातन धर्म में गाय को माता के
समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गाय
सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ-
चतुष्टय की सिद्धि प्रदान करने वाली है।
मानव जाति की समृद्धि गाय
की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
यह सर्व विदित है कि हमारे देश कि गाय
साक्षात लक्ष्मी है। आज के संदर्भ में
लक्ष्मी की व्याख्या रूपये पैसे से
की जा रही है। इस संदर्भ में एक देशी गाय
को देखंे तो वह अकेली प्रति माह
लाखों रूपये देने में सक्षम है। इस विषय
पर पिछले 15 वर्षों से देश विदेश के कई
केन्द्रों में शोध चल रहें हैं। इसके
मध्यनजर किये गये हजारों प्रयोग
सत्यापित करते हैं कि एक देशी गाय
प्रतिदिन गौबर, गौमूत्र और दूध के माध्यम
से लगभग 3 हजार रूपये की अमृत जीवन रक्षक
औषधियां प्रदान करती है। यदि हम आर्थिक
दृष्टिकोण को ध्यान में रखें
तो भी गौवंश हमारे लिए बहुत उपयोगी है।
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