प्राचीन भारत के इतिहास लेखन में ‘इतिहासकारों’ ने घोर
पक्षपाती रवैया अपनाया है। मसलन हमारी प्राचीन परम्परा और संस्कृति घोर
उपेक्षा का शिकार बन गयी है। शायद इसीलिये हम अपने ज्ञान और विज्ञान की
उज्जवल परंपरा से पूर्णतः वाकिफ नहीं है और पश्चिम के ‘पिच्छलग्गू’ बनकर
उनका अन्धानुकरण कर रहे हैं। desilutyens आपके लिए लेकर आयें हैं भारतीय
मनीषियों द्वारा किये गए 10 बेहतरीन आविष्कार
1)विमान ‘संहिता’ – पूरी दुनिया ‘उड़ने’ वाले हवाई विमानों का जनक ‘राइट ब्रदर्स’ को मानती हैं। हालाँकि महाभारत और रामायण कालीन शास्त्रों में ‘पुष्पक’ विमान का उल्लेख मिलता है। महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित विमान ‘संहिता’ में विमानों की कार्यप्रणाली,प्रकार और निर्माण संबंधी कई सारे नियम दर्शाये गये हैं। विमान’संहिता’ के अनुसार प्राचीन विमान 60 फीट चौड़े और 60 से 200 फीट लम्बे होते थे। आधुनिक विज्ञान भी विमान संहिता की ‘उड्डयन’ शैली से सहमत और अचंभित है।
2)खगोलशास्त्र – सहस्त्रों साल से सूर्य,चन्द्रमा और अन्य ग्रहों की कॉस्मिक किरणों के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए ज्योतिष विज्ञान का उपयोग भारत में किया जा रहा है। इसके लिए विशिष्ठ खगोलिक गणनाओं को ‘सूत्रबद्ध’ किया गया.अत्यंत परिशुद्ध एस्ट्रोनॉमिकल कैलकुलेशन जैसे पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी,पृथ्वी का द्रव्यमान,अन्य ग्रहों की प्रकृति आदि का सटीक गणना भारतीय वैज्ञानिक करते आये हैं। सूर्यग्रहण और चन्द्र ग्रहण के कालनिर्धारण का त्रुटिहीन होना,NASA और ISRO को भी अचम्भे में डालता है।
3)सूर्य केन्द्रीय मॉडल – पश्चिमी विज्ञान के ‘आधार’ यूनान के वैज्ञानिकों के ‘भू-केन्द्रीय’ मॉडल जिसके अनुसार पृथ्वी ही इस समूचे ब्रह्माण्ड का केंद्र है,जिसे मॉडर्न विज्ञान के पूरी तरह नकार दिया है। ऐसा माना जाता है की कोपरनिकस और गैलीलियो ने ही इस ‘सौर केन्द्रीय मॉडल’ की आधार शिला रखी.परन्तु यह पूरा सच नहीं है,आर्यभट्ट (476-540 AD) ने पांचवी शताब्दी के पूर्वार्ध में ही यह बताया कि पृथ्वी गोल और अंडाकार है। और पृथ्वी एवं अन्य गृह सूर्य के चक्कर लगाते हैं।
4)गुरुत्वाकर्षण का नियम- भास्कराचार्य नामक एक प्राचीन भारतीय एस्ट्रोनॉमर ने न्यूटन से 500 वर्ष पहले ही 1186 AD में यह खोज निकाला था कि हर वस्तु पृथ्वी की ओर आकर्षित होती है। उनकी प्रसिद्द रचना ‘लीलावती’ में बीजगणित,कॉस्मोग्राफी और एस्ट्रोनोमी से रिलेटेड बेहतरीन सिद्धांत रचे गए हैं।
5)परमाण्विक सिद्धांत- आचार्य कणाद ने 2500 साल पहले ही इस बात का पता लगा लिया था कि एटम यानि कि मैटर को कभी पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है। एक बार चलते-चलते वे अपने हाथ में रखे खाने को तोड़-तोड़कर उसके टुकड़े फेंक रहे थे तो उनको पता चला कि अब वह इस खाने के और टुकडे नहीं कर पाएंगे। उनका ये शोध कार्य आज ‘वैशेषिक दर्शन’ कहलाता है।
6)शल्यचिकित्सा(सर्जरी) -आज से दो-तीन हजार वर्ष पूर्व जब यूरोपीय चिकित्साशास्त्र शैशव-काल में भी नहीं था। उस समय आचार्य सुश्रुत और उनके अनुयायी मोतियाबिंद और ह्रदयप्रत्यारोपण जैसी कठिन शल्यचिकित्सा करने में महारथी थे.सुश्रुत संहिता में सिजेरियन, कैटेरेक्ट,आर्टीफीशियल हाथ-पैर लगाने, राइनोप्लास्टी, 12 तरह के फ्रैक्चर ठीक करना,डिसलोकेशन ठीक करना, यूरीन स्टोन और प्लास्टिक व ब्रेन सर्जरी जैसे ऑपरेशन बतलाये गए हैं। 120 से ज्यादा तरह के सर्जरी इक्विपमेंट्स का वर्णन किया गया है।
7)उड़ने वाले गुब्बारे- पुराने समय में यानी आज से करीब दस हजार वर्ष पूर्व आकाश में उडने वाले गुब्बारे और विमान की सहायता से वैमानिक आकाश से धरा पर छलांग लगाने में सिद्धहस्त थे।अगस्त्य संहिता मे इसका वर्णन इस प्रकार किया गया है-“वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनमस्तके । उदानस्य लघुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम् ।।अर्थात यदि किसी वस्त्र मे हाईड्रोजन बांध दिया जाए तो उससे आकाश मे उडा जा सकता है।(उदान वायु=हाईड्रोजन)
8)डेसीमल सिस्टम -शून्य की खोज से लेकर पूरे अंकशास्त्र को जो आयाम आर्यावर्त में मिला,अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। दशमलव के आविष्कार का भी मुख्य श्रेय आर्यभट्ट को ही जाता है। उन्होने हर गणना का आधार 10 को बनाया जिस से बड़ी से बड़ी संख्या भी 10 की घात के रूप में आसानी से व्यक्त की जाने लगीं। तल्लाक्षनाम यानी (10 power of 53) तक की गणनाएँ प्राच्यकाल में उपलब्ध थीं। आर्यभटीयम् और सिद्धांत शिरोमणि में आप हायर क्लास अलजेब्रा की झलक देख सकते हैं। सूर्य सिद्धांत में त्रिकोणमिति का प्रखर वर्णन किया है, जो कि 1200 साल बाद यूरोप में 1600 ईसवी में Briggs द्वारा दिया गया।
9)पाई(π) का मान – बौद्धायन ने वृत की परिधि और व्यास का अनुपात 3 बताया था। लेकिन उनके बाद 499 AD में आर्यभट्ट ने π के मान की गणना दशमलव के 4 स्थान तक की (3.1416)। नौवीं शताब्दी में एक अरबी गणितज्ञ मुहम्मद इब्ना मूसा ने यह प्रमाणित किया कि ये मान भारतियों के द्वारा दिया गया है।
10)एटम बम – हाल में ही कुछ यूरोपीयन वैज्ञानिकों ने महाभारत काल में ‘परमाण्विक’ विस्फोट की पुष्टि की। इसके अलावा जोधपुर के नजदीक एक जगह 8 हजार से लेकर 12 हजार साल पहले एक भयानक आणविक विस्फोट का पता लगाया। इसमें तकरीबन 50 लाख लोग मारे गए थे व सब कुछ नष्ट हो गया था। इस से पता चलता है कि भारतीयों ने हजारों साल पहले ही एटम बम बना लिया था।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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