पृथ्वी पर कम हो प्राणी का
भार, ब्रह्मा ने किया मृत्यु
निर्माण का विचार: महाभारत
में वर्णित मृत्यु देवी की उत्पत्ति
कथा
ब्रह्माजी को सृष्टि रचना का भार मिला था सो
वह रचनाकर्म में जुट गए लेकिन उन्होंने संहार की कोई व्यवस्था नहीं की थी। ब्रह्माजी के कारण
संसार में प्राणी तो आ जाते थे लेकिन जा नहीं
सकते थे क्योंकि मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं थी,
इस कारण जल्द ही संपूर्ण पृथ्वी प्राणियों से
भर गई। यह देख ब्रह्माजी चिंतित हो गए। जीवों
का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी था कि
संहार भी हो, लेकिन कैसे हो, यह समझ में नहीं
आ रहा था।
चिंता क्रोध में बदल गई और ब्रह्मा के अंगों से
प्रचंड अग्नि निकलने लगी जिसमे प्राणी भस्म
होने लगे अचानक आई आपदा से चारों तरफ
त्राहि-त्राहि मच गई। राक्षसों के अधिपति स्थाणु
रूद्र ब्रह्मा के पास आए।
स्थाणु ने स्मरण कराया- यह सृष्टि आपने बड़े
लगन और परिश्रम से बनाई अब इसे स्वयं क्यों
भस्म कर रहे है उनके कष्ठों को देखिए, मेरी
तरह आपका मन भी करुणा से भर जाएगा
और यह विध्वंस नहीं कर पाएंगे ।
ब्रह्माजी ने कहा… हे रूद्र मैं भी मन से ऐसा नहीं
चाहता किंतु पृथ्वी पर बढ़ते भार की चिंता के
कारण यह शोक है । मैंने प्राणी संतुलन का
विचार किया पर मार्ग नहीं सूझता, इससे मेरा
क्रोध बढ़ा है।
रूद्र के समझाने पर ब्रह्मा ने उस क्रोध को
धारण कर लिया और सृष्टि मुद्रा में गए। तब
उनके शरीर से काले और लाल रंग की एक
नारी उत्पन्न हुई उसकी जीभ, मुख और नेत्र
लाल थे। वह नारी ब्रह्माजी के सामने उपस्थित
हुई
ब्रह्माजी ने उसे आदेश दिया… तुम मेरी संहार,
बुद्धि और क्रोध से प्रकट हुई हो इसलिए तुम
संसार में प्राणियों का संहार करो। तुम्हारा नाम
मैं मृत्यु रखता हूं। तुम ज्ञानी और अज्ञानी
सबका संहार कर सकती हो।
यह सुनते ही मृत्यु फूटफूटकर रोने लगी
ब्रह्माजी ने उसके सभी आंसुओं को समस्ता
प्राणियों के हितों के लिये अंजुलि में रखकर
सहेज लिया और मृत्यु को हर प्रकार से सांत्वना
देने लगे
मृत्यु ने पूछा… आपने मुझे नारी रूप में क्यों
उत्पन्न किया? प्रभु मैं पाप से डरती हूं। जब मैं
लोगों के प्रिय परिजनों को मारने लगूंगी तो वे
मुझे शाप देंगें। मेरे प्रति घृणा रखेंगे। इससे मेरा
मन व्याकुल है
प्रभु मुझे यमराज के कार्य में सहयोगी न
बनाइए। मैं तप करना चाहता हूं। रोते-बिलखते
प्राणियों के शरीर से प्राण का हरण मेरे वश का
नहीं है मुझे क्षमा करें, मैं अधर्म का माध्यम नहीं
बन सकती।
ब्रह्माजी मृत्यु को समझाने लगे… प्रजा के संहार
के संकल्प के साथ ही मैंने तुम्हारी रचना की है
इसलिए तुम्हारे मन में ऐसे विचार आने ही नहीं चाहिए। तुम लोक में निंदा की पात्र नहीं बनोगी।
मेरी आज्ञा से तुम प्रजा का संहार करो।
मृत्यु ने ब्रह्माजी को कोई वचन नहीं दिया और
वहाँ से धेनुकाश्रम आ गई। धेनुकाश्रम में मृत्यु ने एक पैर पर खड़े होकर घोर तप आरंभ किया
तप के कारण ब्रह्माजी प्रकट हुए।
उन्होंने पूछा - मृत्यु किस लालसा में तुम यह
घोर तप कर रही हो ? मृत्यु ने फिर वही बात
कही… मुझे अधर्म से डर लगता है इसलिए तप
कर रहीं हूं। प्रभु मेरी प्रार्थना है कि मुझे रोते-
बिलखते स्वस्थ प्रजा का संहार न करना पड़े
ब्रह्माजी बोले… तुम चार श्रेणियों… उद्धिज,
स्वेदज, अण्ड और पिण्डज में विभाजित
प्राणियों का संहार करने में समर्थवान बनो
सनातन के प्रभाव से तुम पापमुक्त रहोगी।
इस कार्य में सभी लोकपाल, यम और व्याधियां
तुम्हारी सहायता करेंगे। मैं और सभी देवता
तुम्हें वरदान देकर शक्तिसंपन्न करेंगे जिससे
तुम पापमुक्त रहकर निर्मल बनी रहोगी।
मृत्यु की पीड़ा कम नहीं हुई थी। उसने कहा…
यदि यह संहार मेरे बिना पूर्ण नहीं हो संकता तो
मैं अपने रचयिता की बात को नहीं टालूंगी
लेकिन दोषमुक्त प्राणियों का संहार नहीं
करूंगी।
मृत्यु ने कहा… लोभ, क्रोध, अश्या, ईर्ष्या, द्वेष,
मोह, निर्लज्जता और दूसरे के प्रति कठोर
वाणी प्राण हरने के लिए आवश्यक दोष होने
चाहिए तभी मैं संहार का दायित्व ले सकती हूं।
ब्रह्माजी प्रकट होकर बोले… तुम उत्तम रीतियों
से प्राणियों का संहार करो। तुम्हारे आंखों से बहे सारे आंसू मैंने संभाल रखे थे। वे सभी विभिन्न प्रकार की व्याधियां बनेंगे।
तुमने जो दोष कहे, उनके अलावा उन व्याधियों
से ग्रस्त होकर आयुविहीन हुए प्राणियों का भी
संहार करो। तुम प्राणियों के धर्म की स्वामिनी
होगी इसलिए काम और क्रोध का त्याग करके
धर्मपूर्वक संहार करो
ब्रह्माजी की आज्ञा से मृत्यु अंतकाल जाने पर
बिना किसी राग-द्वेष के संहार करती है
ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार प्राणी दोषों से
युक्त होकर स्वयं अपने को मारते है और
जीवनकाल कम करते है ।
व्याधियां मृत्यु के संहार कार्य का आधार तैयार
करती है प्राणी अपने अंत की और स्वयं
अग्रसर होते है, मृत्यु बलपूर्वक किसी के प्राण
नहीं हरती।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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