पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू
से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है।
यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची
में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल
में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।
यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों
में से एक माना जाता है।
नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है।
भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में दर्शन के लिए प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु
आते हैं,जिसमें से अधिकतर संख्या भारत के लोगों की होती है।
इस मंदिर में भारतीय पुजारियों की काफी संख्या है।
सदियों से यह परंपरा रही है कि मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं।
किंवदंतियों के अनुसार मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में
कराया था,लेकिन पहले ऐतिहासिक रेकॉर्ड
13वीं शताब्दी के हैं।
पाशुपत सम्प्रदाय संभवत: इसकी स्थापना से
जुड़ा है।
पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं।
605 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण
छूकर अपने को अनुग्रहीत माना था।
बाद में मध्य युग तक मंदिर की कई नकलों का निर्माण कर लिया गया।
ऐसे मंदिरों में भक्तपुर (1480),ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं।
मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ।
इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया।
स्थानीय किवदंती के अनुसार,विशेष तौर पर नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए,
जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है।
भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए।
जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के
दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी।
कहते हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में
टूट गया।
इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप
में प्रकट हुए।
पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार
मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है।
प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है।
प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है।
पहला मुख 'अघोर' मुख है,जो दक्षिण की ओर है।
पूर्व मुख को 'तत्पुरुष' कहते हैं।
उत्तर मुख 'अर्धनारीश्वर' रूप है।
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है।
ऊपरी भाग 'ईशान' मुख के नाम से पुकारा जाता है।
यह निराकार मुख है।
यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व का कल्याण करो प्रभु पशुपति नाथ !!
कृत्स्नस्य योऽस्य जगत: सचराचरस्य
कर्ता कृतस्य च तथा सुखदु:खदाता |
संसारहेतुरपि य: पुनरन्तकालस्तं
शङ्करं शरणदं शरणं ब्रजामि ||
यं योगिनो विगतमोहतमोरजस्का भक्त्यैकतानमनसो विनिवृत्तकामा: |
ध्यायन्ति चाखिलधियोऽमितदिव्यमूर्तिं
तं शङ्करं शरणदं शरणं ब्रजामि ||
जो इस सम्पूर्ण चराचर जगतके कर्ता और इसे
अपने किये हुए कर्मोंके अनुसार सुख-दु:ख देने
वाले हैं,जो संसारकी उत्पत्तिके हेतु तथा उसका अंतकाल भी स्वयं ही हैं,सबको शरण देनेवाले
उन्हीं भगवान शंकरकी मैं शरण लेता हूं |
जिनके मोह,तमोगुण और रजोगुण दूर हो गए हैं,
वे योगिजन,भक्तिसे मनको एकाग्र रखनेवाले
निष्काम भक्त तथा अपरिच्छिन बुद्धिवाले ज्ञानी
भी जिनका निरंतर ध्यान करते हैं,उन अनंत दिव्यस्वरुप शरणदाता भगवान शंकरकी मैं
शरण लेता हूं |
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,,
सदा सुमंगल,,,,
॥ ऊं पशुपतिनाथाय नमः ॥
कष्ट हरो,,,काल हरो,,,
दुःख हरो,,,दारिद्र्य हरो,,,
हर,,,हर,,,महादेव,,,
जय भवानी
जय श्री राम
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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