Thursday, July 2, 2015

जब हनुमानजी ने अपने बाएं हाथ पर संजीवनी पवर्त उठाया तो..

प्रस्तुत लेख आनंद रामायण से लिया गया है इसलिये यदि किसी प्रकार की कोई भी शंका हो तो कृप्या आनंद रामायण का अध्यन करे।

(जब हनुमान जी देवी उर्मिला की सिद्धियों को देखकर दंग रह गए)

आनंद रामायण के अनुसार जब हनुमानजी ने अपने बाएं हाथ पर संजीवनी पवर्त उठाया तो दिव्य गंधमय पुष्पों की वर्षा होने लगी व चारों ओर से मंगल-ध्वनि होने लगी।
हनुमानजी पर्वत सहित ऊर्ध्वगामी होकर संकल्प मात्र से वायु देव के 48 स्वरूपों को पार करके 49 वें स्वरूप पर पहुंच गए।

यहां से हनुमान जी को अयोध्या पुरी नज़र आई।
जिसे देखकर उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि श्रीराम की नगरी व उनके परिवार जनों का दर्शन किया जाए।

पुरी अयोध्या को ‘रां’ बीज मंत्र द्वारा कीलित देखकर हनुमानजी को रोमांच हो आया। हनुमानजी ने हाथ जोड़कर नंदीग्राम सहित अयोध्या की परिक्रमा की।

फिर नंदीग्राम की एक कुटिया में खिड़की से झांका तो देखा कि भरत जी सिंहासन पर स्थापित चरण पादुकाओं के पास बैठकर ध्यान-मग्न थे।

अर्धरात्रि काल था, सभी सो रहे थे, कौशल्या जी, सुमित्रा जी व कैकयी जी को हनुमानजी ने शयन करते देखा।
उन्होंने देखा कि माता कौशल्या के पलंग पर ही, पैरों की ओर भरत पत्नी मांडवि जी लेटी थी।
ठीक यही स्थिति शत्रुघ्न-पत्नी श्रुतकीर्ति की माता सुमित्रा के पलंग पर थी।

केवल माता कैकयी अपने पलंग पर अकेली थीं।
हनुमानजी ने विचारा कि घर में एक राजबहू उर्मिला भी हैं, फिर माता कैकयी अकेली क्यों?

जिज्ञासा वश हनुमानजी ने ध्यान लगाया तो देखा कि उर्मिला जी ने 14 वर्षों की अवधि में विशेष साधनों का प्रण लिया है तथा वो विशिष्ट साधना में पूरे मनोयोग से जुट हुई हैं।

हनुमानजी ने देखा कि श्रीराम के वियोग में पूरा परिवार योगी-तपस्वी हो गया है।

हनुमान जी ने देखना चाहा कि देवी उर्मिला जी की साधना कहां तक पहुंची है।

देवी उर्मिला जी के भवन का द्वार बंद था, हनुमानजी सूक्ष्म रूप से भीतर प्रवेश कर गए।
हनुमानजी एक दृश्य देखकर चकित रह गए।

एक उच्च पीठासन पर मनोहर दीपक प्रज्वलित है, जिसके दिव्य प्रकाश से सारा कक्ष आलोकित हो रहा है।
उसी दीपक के नीचे ललित चुनरी कलात्मक ढंग से तह की हुई रखी है।

संजीवनी पर्वत पर दिव्य पुष्पों की जो सुगंध थी, वही सुगंध पूरे गर्भगृह को सुवासित किए हुए थी।

हनुमान जी अभी विस्मय से उबर भी नहीं पाए थे कि उन्हें नारी-कंठ की ध्वनि में सुनाई पड़ा, ‘‘आइए हनुमानजी आपका स्वागत है"।

यह ध्वनि देवी उर्मिला जी की है।

हनुमानजी अत्यंत विनम्र होकर बोले, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है देवी कि आपकी साधना पूर्ण रूपेण सफल हो गई, तभी आपने मुझ अदृश्य को देख लिया और पहचान भी लिया।

हनुमान जी ने देवी उर्मिला जी से दर्शन देने की प्रार्थना की।
फिर एक कक्ष का द्वार खुला व एक अद्भुत घटना हुई।

प्रज्वलित दीपक की लौ बढ़कर द्वार तक गई व उर्मिला के मुख मंडल को आलोकित करती हुई उन्हीं के साथ चलती रही।

उर्मिला जी जब दीपक के पास आकर खड़ी हो गई, तब शिखा भी सामान्य शिखा में समाहित हो गई।

हनुमानजी ने भाव-विभोर होकर उर्मिला जी को प्रणाम किया व कहा "आप मुझे आज्ञा व आशीर्वाद दें, मुझे शीघ्र लंका पहुंचना है।’’

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘मुझे ज्ञात है पुत्र! मेरे पतिदेव, मेघनाद की वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित हैं, क्योंकि उन्होनें शबरी के भावना से अर्पित जूठे बेरों की अपेक्षा की थी।

अब उन्हीं बेरों के परिवर्तित रूप से आपके द्वारा सिंचित संजीवनी से उनकी मूर्छा दूर होगी, यही उनका प्रायश्चित है।"

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘हे पुत्र हनुमान! आपके इस महान कार्य का एक दूसरा परिणाम यह भी हुआ है कि आपने बेर की पत्तियों का जो तांत्रिक प्रयोग किया है, उसने रावण के तांत्रिक प्रयोगों का निराकरण किया है।
यह कार्य आपके अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था।’’

हनुमानजी बोले, ‘‘सब कुछ प्रभु श्रीराम की कृपा से हुआ है"।

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘यह सत्य है कि सब राम कृपा से होता है, परंतु आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं।
मैं जानती हूं, आप शिवशंकर के ग्यारहवें रुद्र के अवतार हैं।

अब जाओ वत्स! आगे का कार्य भी निर्विघ्न रूप से संपन्न करो।’’

हनुमानजी बोले, ‘‘आपका आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होगा, आपकी साधना महान है।
आपने सर्वज्ञता की सिद्धि भी प्राप्त कर ली है"।

हनुमानजी ‘जय श्रीराम’ कहकर अदृश्य हो गए।


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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