Tuesday, June 23, 2015

भिन्न भिन्न प्राणियों के शरीर..

भिन्न भिन्न प्राणियों के शरीर जैसा की वैशेषिक
दर्शन में लिखा है | दो प्रकार के होते हैं |

१. योनिज़ - जो माता पिता के संग से उत्पन्न होते
हैं , जिसे मैथुनी सृष्टि कहते हैं

२. अयोनिज - जो बिना माता पिता के संयोग से
उत्पन्न होते हैं और जिसे अमैथूनी सृष्टि कहते हैं |
समस्त प्राणी जो जगत में उत्पन्न होते हैं |

उनकी उत्पत्ति चार प्रकार से होती है -
क - जरायुज - जिनके शरीर जरायु (झिल्ली ) से
लिपटे रहते है और इस जरायु को फाड़कर उत्पन्न होते
हैं , जैसे मनुष्य , पशु आदि ||
ख - अंडज - जो अण्डों से उतन्न होते हैं , जैसे
पक्षी सांप , मछली आदि ||
ग - स्वेदज - जो पसीने सील आदि से उत्पन्न होते हैं
||
घ - उद्भिज्ज - जो पृथिवी को फाडकर उत्पन्न
होते हैं जैसे वृक्ष आदि ||
इनमे से अंतिम दो की सदैव अमैथूनी सृष्टि हुआ
करती है और प्रथम दो की मैथुनी और
अमैथूनी दोनों प्रकार की सृष्टि हुआ करती है |
पृथिवी पर सृष्टि के आरम्भ में
मनुष्यों की उत्पत्ति अमैथूनी सृष्टि से
हुयी थी ना की किसी एक व्यक्ति से
अनेको की उत्पत्ति - क्यूँ
की यदि ऐसा होता तो सभी मनुष्यों में
इतनी विभिन्नताए ना होती और आज
की भाषा में dna में इतनी विभिन्नता न होती -
dna समान होता || Because the Y chromosome is
transmitted from a father to all his sons.
इसलिए सृष्टि की शुरुआत में अनेक
मनुष्यों की उत्पत्ति एक साथ हुयी -
जब एक मनुष्य की उत्पत्ति अमैथुनी हो सकती है
तो अनेक की क्यूँ नहीं ??
यह है वेद का सिद्धांत - की सृष्टि की आदि में एक
साथ अनेक मनुष्यों की सृष्टि हुयी - जिनसे आगे -
मैथुनी सृष्टि हुयी ||
तथा मनुष्यों से पहले सभी पशु , पक्षी , वृक्ष ,
वनस्पति , आदि पैदा हुए क्यूँ की ये एक सिद्धांत है
की जरुरत का सामान पहले है और जरूरत बाद में -
जैसे -
चलने से पहले धरती है |
देखने से पहले सूरज , प्रकाश
सुनने से पहले कान
लिखने से पहले कलम , स्याही
इसी प्रकार मनुष्य के जीवन का सम्बन्ध पशु , पक्षी ,
वनस्पति , पेड़ पौधों पर निर्भर है इसलिए मनुष्य
को इनकी जरूरत है अतः ये जरूरत का सामान पहले
उत्पन्न हुआ - बाद में मनुष्य ||
अमैथुनी सृष्टि को समझने के लिए उत्कृष्ट उदाहरण -
सांचे का उदाहरण -
जिस प्रकार खिलौने आदि बनाने वाला कारीगर
पहले सांचा बनाता है , और फिर उसी सांचे से अनेक
खिलौने ढाल लिया करता है | ठीक उसी प्रकार
अमैथुनी सृष्टि सांचा बनाने की कार्य प्रणाली है ,
उसके बाद मैथुनी सृष्टि सांचे से खिलौने
आदि ढालने का कार्यक्रम है ||
यह सर्वप्रथम सृष्टि त्रिविष्टप - अर्थात तिब्बत में
हुयी - जो की पहले भारत में ही था -
यह बात महर्षि दयानंद ने १८ वि सदी में
ही बता दी थी - जिस तक आज के वैज्ञानिक अब
जाकर पहुंचे है जो वैज्ञानिक पहले उत्तरी , दक्षिण
ध्रुव पर जीवन की शुरुआत मान रहे थे - इस से
पता चलता है की धीरे धीरे आधुनिक विज्ञानं
वैदिक विज्ञानं के करीब आ रहा है - अस्तु ||
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय ||

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

No comments :

लोकप्रिय पोस्ट