Tuesday, June 23, 2015

होली का वैज्ञानिक कारण

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भारत पर्वो का देश है। प्रत्येक पर्व विशेष खगोलीय घटना से बनते हैं। जब सूर्य चन्द्रमा एवं पृथ्वी किसी विशेष अंशात्मक स्थिति में आकर कोण बनाते हैं तो कोई पर्व बनाते हैं। भारतीय जनमानस इन पर्वो को भक्तिरस में डूबकर मनाता है। जब सूर्य कुम्भ राशि में एवं चन्द्रमा सिंह राशि में होकर 180 पर आमने-सामने पड़ते हैं तो होली मनायी जाती है। यह पर्व चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस प्रकार भारत में प्रत्येक पर्व के कारण में `खगोल विज्ञान´ एवं अभिव्यक्ति में धर्मनिहित होता है।

होली दो दिन मनाये जाने वाला त्यौहार है | जहा रात में होलिका दहन होता है और अगले दिन तडके रंग-अबीर का खेल शुरू होता है |
बहुत से आधुनिक लोग होली को अवैज्ञानिक, समय की बर्बादी और फूहड़ त्यौहार कह कर मुह मोड़ लेते है पर वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अपने पूर्वजों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद उचित समय पर होली का त्योहार मनाने की शुरूआत की। लेकिन होली के त्योहार की मस्ती इतनी अधिक होती है कि लोग इसके वैज्ञानिक कारणों से अंजान रहते हैं।

होलिका दहन --
होली पर्व पूर्ण रुप से वैज्ञानिक स्तर पर आधारित है जाड़े की ऋतु-समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। ऋतु बदलने के कारण अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों का शरीर पर आक्रमण होता है जैसे चेचक ,हैजा ,खसरा आदि। इन संक्रामक रोगों को वायुमण्डल में ही भस्म कर देने का यह सामूहिक अभियान होलिका दहन है पूरे देश में रात्रि - काल में एक ही दिन होली जलाने से वायुमण्डलीय कीटाणु जलकर भस्म हो जाते हैं यदि एक जगह से उड़कर ये दूसरी जगह जाना भी चाहें तो भी इन्हें स्थान नहीं मिलेगा क्योंकि प्रत्येक ग्राम और नगर में होली की अग्नि जल रही होगी।
अग्नि की गर्मी से कीटाणु भस्म हो जाते हैं जो हमारे लिए अत्याधिक लाभकारी हैं अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी होली का त्योहार उचित है। जलती होलिका की प्रदक्षिणा करने से हमारे शरीर में कम से कम 140 फारेनहाइट गर्मी प्रविष्ट होती है या हमें काटते हैं तो उनका प्रभाव हम पर नहीं होता बल्कि हमारे अंदर आ चुकी उष्णता से वे स्वमं नष्ट हो जाते हैं।
होलिका दहन की परिक्रमा में 150-200 डिग्री तापक्रम के चारों ओर पंच परिक्रमा से शरीर में अधिक ऊष्मा प्रवेश करती है और प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है|


रंगों की होली ( धुलंडी) ---
होली में पलाश (ढाक, टेशू) के फूल के अर्क को निकालकर उसे शरीर पर डाला जाता था। पलाश के पुष्प का अर्क चर्मरोगों के लिए औषधि होता है। जाड़े की समाप्ति के समय शरीर में अनेक चर्मरोगों का प्रकोप हो जाता है। इससे मुक्ति के लिए पलाश के पुष्प के लाल अर्क को शरीर पर डालते थे एवं सरसो के उबटन से शरीर को मालिश करते थे यह शरीर को निरोग एवं हष्ट पुष्ट रखता है। इस प्रकार होली शरीर को निरोग रखने का अच्छा माध्यम है |

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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