Tuesday, June 23, 2015

विमानों के सम्बन्ध में सच्चाई

श्री राम चरित मानस जिन्होंने भी पढ़ा
होगा वे महर्षि भरद्वाज के नाम से
भलीभांति परिचित होंगे. रामायण में
इनकी बहुत प्रशंसा की गयी है. चरक
संहिता में इन्हें चिकित्सा शास्त्र का
जनक माना गया है।
ये अपने समय के बहुत बड़े वैज्ञानिक भी थे.
हालाँकि सवाल ये भी है कि जहाज तो
इधर १०० साल में बने तो क्या कुछ आलोचक
बताएँगे कि फिर जहाज के इतने सटीक
वर्णन उससे पहले कैसे लिखे गए ?
महर्षि भरद्वाज अपने ग्रन्थ 'यंत्र सर्वस्व' में
आकाश में उड़ने वाले विमानों के सम्बन्ध में
जो जानकारी देते हैं वो चौंका देने वाली
है।
'यंत्र सर्वस्व' के एक खंड 'विमान प्रकरण' में
ये विभिन्न विमानों का विस्तार से
वर्णन करते हैं।
इन्होने विमानों का युगानुसार वर्णन
किया है। युगशक्ति अनुसार विमान अलग
अलग प्रकार के होते हैं। त्रेता में मांत्रिक
( मन्त्र शक्ति ), द्वापर में तांत्रिक ( तंत्र
शक्ति ) और कलयुग में इनके अनुसार
यांत्रिक ( यंत्र शक्ति ) के विमानों का
प्रचलन होता है. सतयुग में विमान की
आवश्यकता नहीं होती क्योंकि मानव
चेतना इतनी उन्नत होती है की बिना
किसी साधन के मनुष्य कहीं भी पहुँचने की
क्षमता रखता है।
पुष्पक विमान को महर्षि मान्त्रिक
शक्ति का विमान बताते हैं।
इनके अनुसार कुछ अन्य विमान इस प्रकार
से हैं -
1. बिजली से चलने वाला - शाक्युदगम
2. अग्नि , जल , वायु से चलने वाला -
भूतवाह
3. गैस से चलने वाला - धूम्रयान
4. तेल से चलने वाला - शिखोदगम
5. सूर्य किरणों से चलने वाला - अंशुवाह
6. चुम्बक से चलने वाला - तारामुखी
7. मणियों से चलने वाला - मणिवाह
8. केवल वायु से चलने वाला - मरुत्सखा
इनके अनुसार कलयुग में यांत्रिक विमान
का प्रचलन होता है जिसमे खनिज तेल ईंधन
रूप में प्रयुक्त होता है और विमानों की
विभिन्न श्रेणियों में यह सबसे निम्न
कोटि का विमान है...इसी ग्रन्थ के
आधार पर भारत के बम्बई निवासी
शिवकर जी ने Wright brothers से 8 वर्ष
पूर्व ही एक विमान का निर्माण कर
लिया था ।
ऑक्सफोर्ड विवि के ही एक संस्कृत
प्रोफ़ेसर वीआर रामचंद्रन दीक्षितार
अपनी पुस्तक “वार इन द एन्शियेंट
इण्डिया इन 1944” में लिखते हैं कि
आधुनिक वैमानिकी विज्ञान में
भारतीय ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण योगदान
है।
उन्होंने बताया कि सैकड़ों गूढ़ चित्रों
द्वारा प्राचीन भारतीय ऋषियों ने
पौराणिक विमानों के बारे में लिखा हुआ
है।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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