Sunday, June 28, 2015

जातिवाद पर क्या कहते है हमारे शास्त्र ?


भविष्य पुराण ( 42,श्लोक 35) में कहा गया है-
शूद्र ब्राह्मण से उत्तम कर्म करता है तो वह ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ है।
ब्राम्हण क्षत्रिय विन्षा शुद्राणच परतपः।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवे गुणिः ॥
गीता॥१८-४१ ॥
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥
गीता॥४-१३॥
अर्तार्थ ब्राह्मण, क्षत्रिया , शुद्र वैश्य का विभाजन व्यक्ति के कर्म और गुणों के हिसाब से होता है, न की जन्म के...
गीता में भगवन श्री कृष्ण ने और अधिक स्पस्ट करते हुए लिखा है की की वर्णों की व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होती है...
षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात् तथैव च॥ (मनुस्मृति)
आचारण बदलने से शूद्र ब्राह्मण हो सकता है और ब्राह्मण शूद्र ।।
यही बात क्षत्रिय तथा वैश्य पर भी लागू होती है ।।
निष्कर्ष मेरे द्वारा - जातिवाद वही फैलाता है जो नास्तिक है क्योकि आस्तिक व्यक्ति
श्रीमद भगवत गीता में भगवान् ‪#‎श्रीकृष्णा‬ के द्वारा बताये गये मार्ग को नकारेगा नही !
‪#‎HinduUnited‬
_/\_ ‪#‎जय_श्रीराम‬ _/\_

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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