Tuesday, June 23, 2015

संख बजाने या घर मे रखने के फ़ायदे

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हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही शुभ माना गया है। इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं। इसलिए एक आम धारणा है कि, जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि आती है।  पूजा-पाठ में भी शंख बजाने का नियम है। यदि इसके धार्मिक पहलू को दरकिनार भी कर दें तो भी घर में शंख रखने और इसे नियमित तौर पर बजाने के ऐसे कई फायदे हैं, जो सीधे तौर पर हमारी सेहत से जुड़े हैं।

1. शरीर का विकास होता है- माना जाता है कि पूजा-पाठ में शंख बजाने से शरीर और आसपास का वातावरण शुद्घ होता है। सतोगुण में वृद्धि हाेती है जाे कि मनुष्य के विकास में सहायक है।

2. सकारात्मक विचार पैदा होते हैं- कहा जाता है कि जहां तक शंख की आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं और वे पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित होते हैं।

3. लक्ष्मी का वास-  माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में शंख को धारण करते हैं। इसलिए माना जाता है कि शंख को रख्रने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है।

4. सांस के रोगो में है असरदार - शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है और स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर सांस के रोगी के लिए यह बेहद असरदार माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार शंख बजाने से दमा, लिवर और इन्फ़्लुएन्ज़ा जैसी बीमारियां भी दूर होती हैं।

5. जल के फायदे- शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है। इसमें कैल्श‍ियम और फॉस्फोरस के गुण मौजूद होते हैं। लिहाजा शंख में रखे पानी के सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं।
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[3/4/2015, 20:07] Me: सनातन धर्म का आधार और ज्ञान का भंडार… वेद
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वेद क्या हैं ?

”वेदो अखिलो धर्म मूलम ” … ”वेद धर्म का मूल हैं” … राजऋषि मनु के अनुसार ‘वेद’ शब्द ‘विद’ मूल शब्द से बना है… ‘विद’ का अर्थ है… “ज्ञान”…

वेद 1.97 बिल्लियन वर्ष पुराने हैं | वेदों के अनुसार यह वर्तमान सृष्टि 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख और लगभग 53000 वर्ष पुरानी है और इतने ही पुराने हैं “वेद” | जैसा की ऋग्वेद मन्त्र 10/191/3 में कहा गया है की यह सृष्टि , इससे पिछली सृष्टि के

समान है और सृष्टि के चलने का क्रम शाश्वत है , इसलिए “वेद” भी शाश्वत हैं |” वेदों का वास्तव में सृजन या विनाश नहीं होता , वे तो केवल प्रकाशित और अप्रकाशित होते हैं , परन्तु , ईश्वर में सदैव रहते हैं”-आदि जगद्गुरु शंकराचार्य…”वेद अपौरुषेय हैं”- कुमारीलभट्ट…
वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं… बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ | ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारम्भ के समय चार ऋषियों को देते हैं… जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं | इन ऋषियों के नाम हैं… अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा |

1.ऋषि अग्नि ने “ऋग्वेद” को प्राप्त किया
2.ऋषि वायु ने “यजुर्वेद” को प्राप्त किया
3.ऋषि आदित्य ने “सामवेद” को प्राप्त किया और
4.ऋषि अंगीरा ने “अथर्ववेद” को प्राप्त किया…

इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया…

ऋग्वेद दिव्य मन्त्रों की संहिता है | इसमें १०१७ (1017) ऋचाएं अथवा सूक्त हैं जो कि १०६०० (10600) छंदों में पंक्तिबद्ध हैं | ये आठ “अष्टको” में विभाजित हैं एवं प्रत्येक अष्टक के क्रमानुसार आठ अध्याय एवं उप- अध्याय हैं | ऋग्वेद का ज्ञान मूलतः अत्रि, कन्व, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदाग्नि, गौतम एवं भरद्वाज ऋषियों को प्राप्त हुआ | ऋग वेद की ऋचाएं एक सर्वशक्तिमान पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की उपासना अलग अलग विशेषणों से करती हैं…

सामवेद संगीतमय ऋचाओं का संग्रह हैं | विश्व का समस्त संगीत सामवेद की ऋचाओं से ही उत्पन्न हुआ है | ऋग्वेद के मूल तत्व का सामवेद संगीतात्मक सार है, प्रतिपादन हैं…

यजुर्वेद मानव सभ्यता के लिए नीयत कर्म एवं अनुष्ठानों का दैवी प्रतिपादन करते हैं | यजुर वेद का ज्ञान मद्यान्दीन, कान्व, तैत्तरीय, कथक, मैत्रायणी एवं कपिस्थ्ला ऋषियों को प्राप्त हुआ…

अथर्ववेद ऋग्वेद में निहित ज्ञान का व्यावहारिक कार्यान्वन प्रदान करता है ताकि मानव जाति उस परम ज्ञान से पूर्णतयः लाभान्वित हो सके | लोकप्रिय मत के विपरीत अथर्ववेद जादू और आकर्षण मन्त्रों एवं विद्या की पुस्तक नहीं है…

वेद- संरचना…

प्रत्येक वेद चार भागों में विभाजित हैं, क्रमशः : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् | ऋचाओं एवं मन्त्रों के संग्रहण से संहिता, नीयत कर्मों और कर्तव्यों से ब्राह्मण , दार्शनिक पहलु से आरण्यक एवं ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषदों का निर्माण हुआ है | आरण्यक समस्त योग का आधार हैं | उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है एवं ये वैदिक शिक्षाओं का सार हैं…

वेद: समस्त ज्ञान के आधार हैं…

अनंता वै वेदा: … वेद अनंत हैं…

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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