Tuesday, June 23, 2015

समुद्र मंथन के निहितार्थ🐚

🌷🌱समुद्र मंथन आरंभ हुआ था, विष प्राप्त करने के लिए नहीं, जरा निवारिणी सुधा यानी अमृत प्राप्त करने के लिए. यह इतना बड़ा कार्य था कि इसे पूरा करने के लिए एक दूसरे के जान के दुश्मन देवता व असुर दोनों साथ आ गए थे. यानी यह एक असंभव जैसा कार्य ही रहा होगा.

🌷🌱असंभव जैसे कार्य में कोई हाथ कब लगाता है, तभी न जब उसे विश्वास हो कि उसका जो फल आएगा वह दुर्लभ होगा, जो सारे कष्टों का अंत कर देगा. समुद्र मंथन से अमृत सबसे अंत में मिला था. सबसे पहले तो मिला था संसार का सबसे खतरनाक विष- हलाहल.

🌷🌱आप सोचिए यदि देवताओं या असुरों को जरा भी आभास होता कि इस सबसे कठिन परिश्रम के पहले परिणाम के रूप में हलाहल विष निकलेगा तो वे क्या कभी समुद्र को मथते. और यदि नहीं मथते तो ऐरावत हाथी, उच्चैश्रवा जैसा उत्तम अश्व, पारिजात वृक्ष, विभिन्न रत्नों के साथ हाथों में अमृत कलश लिए सर्वश्रेष्ठ वैद्य धन्वंतरि कैसे मिलते!

🌷🌱समुद्र ने सबसे पहले विष देकर यह संदेश दिया कि आप जब कोई बड़ा कार्य आरंभ कर रहे हैं तो पहले आपको पीड़ा का सामना करना पड़ेगा. संभव हैं कि सबकुछ दांव पर लग जाए. वह ईश्वर आपकी परीक्षा ले रहे हैं, जितनी बड़ी परीक्षा उतना ही श्रेष्ठ फल. आप पूरे समर्पण के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहिए. यदि आपके प्रयासों में पूरी निष्ठा है तो भरोसा रखें विष हरने के लिए महादेव स्वयं आएंगे।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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