Tuesday, June 23, 2015

धर्म क्या है ?

जनसाधारण में ऐसी मान्यता है कि धर्म अनेक होते हैं, वास्तव में धर्म सदैव एक ही होता है उसके साथ हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि विशेषण लगाना अज्ञानता है, धर्म का वास्तविक अर्थ है निम्न गुणों को जीवन में धारण करना :-

१.अहिंसा:-
शरीर, मन और वाणी से किसी को किसी प्रकार का कष्ट न देना,सबसे प्रीति पूर्वक व्यवहार करना।न्याय और धर्म की रक्षा हेतु दण्ड देना हिंसा नहीं है l

२.सत्य:-सदैव सत्य और प्रिय बोलना ।

३.अस्तेय:- छल, कपट, चोरी आदि न करना।

४. ब्रह्मचर्य :- इंद्रियों का सदुपयोग करना, स्वाद ले ले कर उनका भोग न करना ।

५.अपरिग्रह :-आवश्कता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना, लोभ लालच न करना, यथाशक्ति सुपात्रों की सहायता करना ।

६.शौच:-शरीर,घर, गाँव,नगर, कार्यालय आदि को साफ
सुथरा रखना ।यज्ञ/हवन आदि द्वारा वातावरणको शुध्द रखना ।

७.सन्तोष :-इमानदारी से परिश्रम करना औरउसका जो भी फल ईश्वर दे उसमें सन्तुष्ट रहना।

८.तप:-लाभ हानि, मानअपमान, निन्दा स्तुति,हर्ष शोक आदि में सम रहना, विचलित न होना l

९.स्वाध्याय :-वेदादि शास्त्रों का पढना, आत्मनिरिक्षणकरते रहना, त्रुटियों को दूर करना,ओ३म् का जप करते रहना आदि l

१०.ईश्वर प्रणिधान:-सर्वव्यापक, निराकार ईश्वर के प्रति दृढ़ विश्वास और प्रेम रखना। प्रात: सायं ध्यानावस्थित होकर ईश्वर के गुणों का चिन्तन करना अर्थात संध्या करना, दैनिक यज्ञ करना आदि l

विश्व शान्ति,मनुष्य जन्म की सफलता,यम नियमों ,धर्म के दस लक्षणों एवं समाधि अर्थात ईश्वर साक्षात्कार के मूल में भी यही सब बातें आती हैं l

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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