Tuesday, June 23, 2015

राजा विक्रमादित्य भारत के सबसे महान सम्राट कहे जा सकते हैं. उनका साम्राज्य पूरब में चीन से लेकर पश्चिम में इराक और टर्की तक फैला हुआ था. यकीन नहीं होता?
आगे की कुछ चीज़ें पढने पर आपको ज़रूर इस बात पर यकीन हो जाएगा कि राजा विक्रमादित्य का साम्राज्य इतना महान था और उसकी पहुँच यूरोप के इन देशों तक थी.
और इस चीज़ की पुष्टि भी हो जाएगी कि ‘इस्लाम’ धर्म के आने के पहले इन मध्य पूर्व के देशों में विक्रमादित्य का साम्राज्य था और यहाँ ‘सनातन धर्म’ का पालन किया जाता था.
ऐसा कहा जाता है कि ‘अरब’ का वास्तविक नाम ‘अरबस्थान’ है. ‘अरबस्थान’ शब्द आया संस्कृत शब्द ‘अरवस्थान’ से, जिसका अर्थ होता है ‘घोड़ों की भूमि’. और हम सभी को पता है कि ‘अरब’ घोड़ों के लिए प्रसिद्ध है.
‘टर्की’ देश में एक बहुत पुराना और मशहूर पुस्तकालय है जिसका नाम मकतब-ए-सुल्तानिया है. इस पुस्तकालय के पास पश्चिम एशियाई साहित्य से सम्बंधित सबसे बड़ा पुस्तक संग्रह है. इसी संग्रह में एक किताब संरक्षित रखी गई है.
किताब का नाम है ‘सयर-उल-ओकुल’. इस किताब में इस्लाम के पहले के कवियों और इस्लाम के आने के तुरंत बाद के कवियों का वर्णन किया गया है.
इसी किताब में मौजूद है ‘सम्राट विक्रमादित्य’ पर आधारित एक कविता.
कविता ‘अरबी’ में है लेकीन उस कविता का हिंदी अनुवाद हम आपके सामने पेश करते हैं.
कविता में मौजूद ये कुछ पंक्तियाँ हैं.
“खुशनसीब हैं वे लोग जो राजा विक्रम के राज में जन्मे,
उदारता और कर्ताव्यप्रायाणता के प्रतीक हैं राजा विक्रमादित्य.
हम, ‘अरबी’ और हमारी ज़मीन अंधकार में फँसी हुई थी लेकिन राजा विक्रम ने हमारी ज़मीन पर अपने दूतों को भेज कर यहाँ फिर से रौशनी का आगमन किया है”.
यह कविता इस बात का सबूत है कि विक्रमादित्य भारत के पहले राजा थे जिन्होंने अरबस्थान में विजय प्राप्त की, राज्य पर और लोगों के दिल पर.
राजा विक्रमादित्य के साम्राज्य का नक्शा|



।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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